Tuesday, 3 November 2020

एक दूसरे की जरुरत बनते-बनते एक दूसरे की आदत बन गए...

अक्टूबर महीने के आखिरी दिन थे । सर्दियाँ ठंडी हवाओं के सहारे दस्तक दे चुकी थी । दिन ब दिन शामें ठंडी होती जा रही थी और इन्ही ठंडी शामों में हम एक दूसरे के करीब आते, एक दूसरे को प्यार करना सीख रहे थे । कभी हाथ में हाथ डाले दूर तक चलते हुए एक दूजे की छोटी छोटी खुशियों के बहाने ढूंढते, किसी सुबह चाय की चुस्कियों के साथ पौधों पर फैली ओंस को निहारते हुये, कभी गुनगुनी धूप सेंकते एक दूजे के स्पर्श को महसूस करते हुए तो कभी पार्क में खेलती किसी बच्ची की खिलखिलाहट में गुम होते हुए ... हमें पता भी नही चला कि कैसे हम एक दूसरे की जरुरत बनते-बनते एक दूसरे की आदत बन गए । यह आदत अच्छी थी या बुरी इसका फैसला शायद हम करना नहीं चाहते थे। हम एक दूसरे के साथ होते तो ऐसी बहुत सी आवश्यक बातें भूल जाते थे । चाय का बहाना बना जब हम हर शाम मिलते तो अपने सपनों की बातें करते, हाईवे पर दौड़ती गाड़ियों को देख अपने आउटस्टेशन ट्रिप का प्लान बनाते, आसमान में करीब आते चाँद और किसी सितारें को देख थोड़ी के लिए ही सही अपनी मुस्कुराहट को अपने चहेरे पर थाम लेते । 
To be continued...
~Deepak

Thursday, 10 September 2020

पहाड़ों से कुछ मांगों तो वो मिल जाता है न?

यह मसूरी में हमारा तीसरा दिन था । बिना किसी को बताए या यूं कहूँ कि अपनी वो रोज रोज वाली दुनिया से दूर हम बादलों के बीच थोड़े वक्त के लिए भटकने चले आये थे । वास्तव में ये आईडिया उसका ही था । हम अब तक वीकेंड्स पर दिल्ली के कोने कोने घूम लेने के बाद मुगलों और बाद में ब्रिटिश के बसाये इस शहर से ऊब से गए थे ।
ठंडी ठंडी हवाओं का सहारा लिए बादल उड़ते जा रहे थे । मौसम की खुशमिजाज़ी ऐसी थी कि किसी को भी अपने आकर्षण में बांध सकती थी ।
सुबह से ही आज वह बड़ी शांत लग थी । उसकी चंचल आँखें बड़ी देर ठिठकी पहाड़ों के उस पार ताक रही थी । अचानक वह बोली
: "पहाड़ों से कुछ मांगों तो वो मिल जाता है न? "
: "हाँ शायद ।" मैंने थोड़ी बेपरवाही में जवाब दिया । "लेकिन चुप होकर नहीं चिल्ला कर मांगना पड़ता है" मैंने उसे छेड़ने के अंदाज़ में यूं ही बोल दिया ।
: "क्यूँ ...ये तो इतने विशाल हैं ..क्या ये हमारे मन की बातें नहीं सुन पाते ?"
: "जी ...नहीं ...ये उन्हीं आवाजों को सुनते हैं जो इन तक पहुँच पाती है ...और फिर उन्हीं ख्वाहिशों को पूरा भी करते हैं जिनमें इन्हें सच्चाई और ईमानदारी दिखती है ।" मैंने एक बच्चे को समझाने के अंदाज़ में जवाब दिया ।
उसने आगे कुछ पूछा नहीं, बस पहाड़ों को ताकती रही। ऐसा लग रहा था जैसे पिछली रात देखा कोई ख़्वाब उसकी आँखों में उतर आया था और वह इन ख्वाबों को इन विशाल पहाड़ों को सौंपकर एक उम्मीद के सहारे बाकी की ज़िंदगी खुश और बेपरवाह रहना चाहती थी ....

Sunday, 2 August 2020

जवानी से बचपन का सफर...


शहर से गाँव जाना मेरे लिए जवानी से बचपन का सफर तय करने जैसा होता है ।
बचपन जिंदगी का वह हिस्सा जहाँ हुड़दंगई और बेफिक्री के साथ साथ हमारे खुद के कई मासूम सवाल होते हैं । कुछ के जवाब अपने मम्मा पापा दादी नानी और साथ के दोस्तों से जान पाते हैं और कुछ अन्तचित्त में कहीं दबे रह जाते हैं ।
ऐसे ही कुछ ख्वाहिशें भी होती हैं जो कहीं सिनेमा देखकर या कहानिया पढ़कर अलग अलग आकार लेकर पलती बढ़ती है ।
मुझे याद है मेरा बड़ा मन होता काश मेरे गाँव में भी एक नदी और एक छोटा सा रेलवे स्टेशन होता । अब ये बात सोचता हूँ तो बड़ी हंसी आती है । उस गुल्ली डंडे के ज़माने में नदी और रैलवेस्टेशन से क्या मतलब ।
पर बचपन तो बचपन होता है ; आजाद , बेफिक्र , नटखट , चंचल और मासूम ...
~दीपक

Thursday, 28 May 2020

प्यार में डूबी एक सुबह का मुकम्मल हो जाना ....

असह्य गर्मी के बाद
 बारिश की बूदों 
और 
ठंडी ठंडी हवावों में लिपटा सुकून । 
अपनी कल्पना में हकीकत की हद तक
मेरा तुम्हें महसूस करना।

 एक ऐसे ही सुकून भरे मौसम में
 तुम्हारा हाथ थामें दूर तक चलते जाना । 
एक दूसरे को देख के हौले से मुस्कराना और
 उस मुस्कराहट का बारिश की नन्ही नन्ही बूदों में घुलकर 
हमें अंदर तक सराबोर कर देना । 
ठंडी हवावों के आगोश में बंधे 
हमारा देर तक भीगते रह जाना । 

उस मनचली शाम का ढल जाना 
बादलों की ओट में छिपे
चाँद का निकल आना 
रात के अंधेरें में हमारा एक दूजे में 
खोकर
प्यार में डूबी एक सुबह का 
मुकम्मल हो जाना ....

~दीपक

Saturday, 9 May 2020

कमियाँ और अच्छाइयां और ज़िन्दगी

हम इंसान हैं । हांड़-मांस के पुतले में गढ़े, भावनाओं से सिंचित। धरती की खरबों की आबादी के होते हुए भी हम, हमारा व्यक्तित्व कई मायनों में एक दूसरे से अलग है । हमारे जन्म से लेकर वर्तमान तक कई सारे पहलू हैं जो हमको प्रभावित करते हैं और दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं । हम हर दिन अपने जीवन की होने वाली घटनाओं से बहुत सी बातें सीखते भी हैं और उनमें से बहुत सी बातें हमारे व्यवहार का निर्धारण भी करती है । हम सब कौशल, ज्ञान, किसी कार्य विशेष के लिए क्षमताओं, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता की स्थिति इत्यादि में मजबूत या कमजोर, अच्छे या बुरे हो सकते है लेकिन एक सत्यता जो कभी हमारा पीछा नहीं छोड़ती वह यह है कि हम कभी पूर्ण नहीं होते । हम सबमें कुछ अच्छाइयां तो कुछ कमियां बनी रहती है । इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि हमें उन कमियों को दूर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए इसका मतलब बस इतना सा है हमें अपनी अच्छाइयों के साथ अपनी बुराइयों को स्वीकार करना सीखना चाहिए । साथ ही साथ दूसरों के अंदर उनकी बुराइयों से परे उनकी अच्छाइयों को भी समझना और सम्मान देना चाहिए । 
किसी साथ रहने, साथ वक्त गुजारने के लिए जरूरी होता है एक दूसरे को समझना । एक दूसरे को मौके देना । अपनी किसी गलती के लिए माफी मांग लेना और औरों को माफ कर देना । प्यार की मिठास में ढेर सारी कड़वाहट घुल जाती है ..बस जरूरत होती है पहल करने की । 
~दीपक 

Wednesday, 6 May 2020

स्वाभिमान और रिश्तों का रंग ...

ज़िन्दगी में कई बार स्थितियाँ हमें  उहापोह के बीच ला खड़ा करती है । सामने कुछ रास्ते होते हैं और हम आत्मसम्मान, रिश्तों की अहमियत, और ऐसे ही न जाने कितने एहसासों से घिरा महसूस करने लगते हैं । वह आज काफी देर शांत बैठी रही । कभी पार्क की घास में अपने हाथों को ऐसे सहलाती जैसे प्यार से किसी को दुलार रहा हो और कई बार उन्हें नोचने लगती । हमेशा उसका मन पढ़ लेने वाला चिराग आज चुपचाप बस उसे देखे जा रहा था । वह समझ रहा था कि आज किसी द्वंद में घिरी मिनी रास्ते की तलाश कर रही है । अचानक उनसे चिराग को देख कुछ बोलना चाहा और  फिर सोचने लगी । थोड़ी देर बाद वह वापस चिराग की तरफ मुड़ी और बोली " अपने आत्मसम्मान, स्वाभिमान को रिश्तों के ऊपर कितनी तवज्जो देनी चाहिए चिराग ? "
एकाएक अपनी तरफ आये इस प्रश्न के लिए चिराग पूरी तरह तैयार नहीं था । वह थोड़ी देर चुप रहा । थोड़ी देर सोचने के बाद वह दूर तक जाती सड़क को देखते हुए बोलने लगा " मिनी स्वाभिमान मानव का एक गुण है, यह हमें आत्मगौरव और आत्मसम्मान का बोध कराता  है। यह ऐसा गुण है जो हमें जाग्रत करता है और अपने ऊपर भरोसा करने की शक्ति देता है । और रिश्ते, महीन धागों के समान एहसासों से जुड़े रिश्तें जीवन में रंग भरते हैं । हमें जीवन जीने का सलीका सिखाते है। रिश्ते जीवन के लिए बहुत अहम है । लेकिन जब इनमें टकराव की स्थिति आ जाय तो मेरा मानना है कि हमारे लिए सच और ईमानदारी की कसौटी पर इन्हें परखना जरूरी हो जाता है । क्योंकि सच हमेशा एक सा रहता है अडिग । और हमें यह बोध कराता है कि क्या रिश्तों का रंग फीका पड़ गया है या हम अपने अभिमान को हम स्वाभिमान समझने की भूल कर रहे हैं "। 

Friday, 24 April 2020

कदमों की दूरियां और दिलों के मजबूत बंधन...

दोनों हर शाम अब बातें करने लगे हैं । कोशों दूर वो अपने अपने हिस्से के आसमान को निहारते, उसमें बनती किसी आकृति में एक जानी पहचानी तस्वीर को तलाशते मुस्कुराने लगे हैं । एक रोज वह यूँ ही बोल पड़ी पता है तुम मेरे लिए  चाँद जैसे हो जिसकी ठंडी रोशनी में मैं घंटों बैठी रह सकती हूं ..यूँ ही ..बेपरवाह होकर । उसकी यूँ ही कही उस बात को वह घंटों सोचता रहा । वह भी तो शाम की ठंडी हवावों में अकेले बैठ के उसे महसूस करता है और ऐसा लगता है जैसे उसका अक्स उसे छूकर उसके साथ अठखेलियाँ कर रहा है।  वो कोशों दूर थे लेकिन एक दूसरे को समझना, एक दूसरे को महसूस करना, एक दूसरे के खुशियों में खुश और दुख में संबल बनना उन्हें हर पल बांधे रखता था। जब दो दिल एक दूसरे के लिए धड़कना, एक दूसरे को प्यार करना, एक दूसरे के लिए जीना शुरू कर देते हैं तो कदमों की दूरियां दिलों के मजबूत बंधन के आगे ओछी हो जाती है। 
वह महत्वाकांक्षी है ,जीवन की दौड़ में बहुत कुछ हसिल करना चाहता है । उसकी इन बातों को सुन कर बहुत देर तक वह अपने लिए सपने बुनने लग जाती है । ऐसे सपने जिसमें वह अपने फैसलों के लिए आजाद होगी, अपने छोटी छोटी ख्वाहिशों को रंग दे सकेगी जो एक मध्यमवर्गीय परिवार में संभव नहीं हो पाता । उसे अपने मौजूदा हालात से शिकायत नही है लेकिन उड़ान वाले पंख उसे भी खूब भाते हैं । 
किसी शाम वो मिलने के लिए बच्चों जैसी जिद पर अड़ जाती तो उसे मनाने के लिए वह ढेर सारे बहाने ढूंढता है, कभी कभी वादे भी करता है। कुछ वक्त की रफ्तार में पूरे हो पाते हैं कुछ छूट जाते हैं । जो पूरे होते उन पलों को वो जी भर के जीते हैं और जो छूट जाते उन्हें अगले आने वाले दिनों के लिए अपने जेहन में संभाल लेते हैं । वो कहते हैं न हर चीज़ हमारे बस में नहीं लेकिन अपने मौजूदा पलों को जी भर के जीने का सलीका हमें थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन खुशियों से भर सकता है और ऐसा लगता है कि ये राज वो बखूबी जानते हैं ....
To be continued...
~दीपक 

Wednesday, 22 April 2020

इमला....


“अच्छा तो तुमने वर्णमाला सीख ली , और तुम्हें शब्द बनाना भी आ गया, चलो आज तुम्हे इमला लिखना सिखाते है” मैंने मुस्कराते हुए 8 वर्षीय अजमत से कहा | “इमला ! ये क्या होता है सर जी ” अपनी हल्की कोमल आवाज और आश्चर्य भरी नज़रों से अजमत मेरी तरफ देखने लगा | “ अभी सब जान जाओगे अजमत ” कहते हुए मैंने  अजमत की कॉपी के उपरी हिस्से में हेडिंग लिख दी .. “इमला” | एक वक्त को बड़ा अजीब लगा , मै खुद में ही टटोलने लगा , कहीं मैंने गलत तो नहीं लिख दिया | पर अगले ही पल अपनी इस हरकत पर खुद ही मुस्कराने भी लगा | कैसे भूल सकता हूँ भला .. वो दिन, जब गर्मियों की दोपहरी में इंटरवल के बाद इमला बोला जाता था| हमें घने आम के पेड़ों की छाँव तले दूर दूर बैठा दिया जाता था | और गुरु जी द्वारा वो सारे जतन किये जाते ताकि हम नक़ल न कर सके| कभी –कभी तो हम नक़ल करने के लिए महत्वाकांक्षी, आशीर्वाद और ऐसे न जाने कितने कठिन शब्दों की पर्चियां बनाकर लाते पर गुरूजी की पैनी निगाह के आगे ये हथकंडे हर बार धराशाही हो जाते , और मन दबाकर हमें अपनी गलतियों के लिए छड़ियाँ खानी पड़ती | पर हम भी हार मानने वालों में से कहाँ थे , हर बार छड़ियों से बचने के लिए नए –नए तरीके इजाद कर ही लेते |
इन मामलों में शुरुआत से ही बड़ा दबदबा था अपना | जब पर्चियों वाले तरीके फेल हुए तो हमने नया तरीका ढूँढा | हम अन्य क्लासों से अंतरिम सूत्रों के जरिये ये पता लगा लेते कि आज किस पाठ से इमला बोला जाना है... बस फिर ! शुरू रट्टेबाजी |  
कभी –कभी गुरु जी के सख्त रवैये पर गुस्सा भी आती , पर जब सही –सही इमला लिख लेने पर सबके सामने मुस्कराते हुए गुरूजी पीठ थपथपाते तो ऐसी गुस्साएं छू –मंतर हो जाती |
मैंने बोलना शुरू किया और अजमत के उगलियों में फंसा पेन नए शब्दों के आकार में चलने लगा कुछ थोड़े गलत, कुछ पूरे तो कुछ बिलकुल सही | 
गुरु जी कहा करते गलतियाँ हमारी सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण शिक्षक होती है | ये हर वक्त हमें सिखाती है ,उम्र के हर मोड़ पर, जिन्दगी के हर पहलू पर |
तब ये बातें अजीब लगती , ऐसा लगता जैसे गुरूजी किसी किताब की पढ़ी बातें बोल रहें हैं | पर आज  12-14 साल पुराने उस वक्त की बातें समझ आती है | गलतियाँ भी कितनी जरुरी है न ! गलतियों का किरदार कितना महत्वपूर्ण है इस दुनिया को जानने , समझने,परखने और नए आगाज़ के लिए |     
~ दीपक

Monday, 13 April 2020

उदासियों का भी एक दौर होता है....

कई बार आप ऐसे भावनात्मक दौर से गुज़रते हैं जिसको आप दूसरों या कभी कभी खुद को भी समझा नहीं पाते । शायद  तन्हाई, ऊब, उदासी, अन्मयनस्कता या थोड़ा थोड़ा सब । ऐसा लगता है जैसे उदासी का एक दौर सा चल रहा हो । आप ढेर सारे लोगों को याद करते है उनके बारे में सोचते हैं और बड़ी देर तक इसी में उलझे रह जाते हैं । आप अतीत को याद करते हैं , भविष्य के लिए चिंतित होते हैं लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण है.. वर्तमान;  उसे खुलकर जी नहीं पाते । आप मुट्ठी से फिसलती रेत जैसे गुजरते वक्त के लिए चिंतित होते हैं लेकिन चाहकर भी अपने अनुरूप उसका इस्तेमाल नहीं कर पाते । हम में से कइयों के साथ ऐसा होता होगा और हम सभी अपने अपने ढंग से ऐसे वक्त में खुद को संतुलित करने के अपने प्रयास भी करते होंगे पर मुझे लगता है उदासियों का भी एक दौर होता है वैसे ही जैसे खुशियों का ...
~दीपक 

Sunday, 12 April 2020

वह बस इतना चाहती है..

वह चाहती है एक रोज वह सोकर उठे तो मैं मुस्कुराता हुआ उसका स्वागत करूँ 
वह चाहती है एक रोज सुबह की चाय मैं व्हाट्सएप्प के मैसेज न देख उसके साथ बैठ के पियूँ 
वह चाहती है किसी अलसायी दोपहरी में मैं उसके बालों में थोड़ा हाथ फेर दूँ 
वह चाहती है कि किसी शाम उसका हाथ थामे थोड़ी दूर टहलने निकल जाऊं 
वह चाहती है कि किसी रोज यूँ ही मैं उसके पसंद की कोई कोई डिश बना दूँ 
वह बस इतना चाहती है किसी रात जब उसे नींद न आये तो मैं उसके लिए थोड़ी देर गुनगुना दूँ ..वही गीत जिसने हमें कभी प्यार करना सिखाया था ....
~दीपक

Tuesday, 24 March 2020

सपनों वाली दुनिया

आवारापन हर किसी को नसीब नही होता है । अक्सर हमारी जिंदगियां उम्मीदों, आशाओं और कर्तव्यों के महीन-महीन लेकिन मजबूत धागों में उलझी रहती है । कर्तव्यों से भागना बिल्कुल उचित नहीं है लेकिन आशाओं के खातिर सपनों की तिलांजलि भी कहीं से भी न्यायपरक नहीं है । हाँ ! आप चाहे तो उसे स्वार्थी कह सकते हैं लेकिन वह हमेशा जीवन में तारतम्यता का पक्षधर रहा है। उसके इन खयालों, उधेड़बुन से बेखबर बस पहाड़ी पर बने सकरे रास्ते पर चलती जा रही है । खिड़की से बाहर दूर तक फैले चाय के बागानों के बीच कुहरा अटका हुआ सा लग रहा है । दिल्ली से दूर ऊंटी की ये पहाड़ियां, यहां की ठंडी हवाएँ, अनजान चेहरे सब किसी नाटक के दृश्य और किरदार जैसे दिख रहे हैं जिनको कई वर्षों से वो अपने सपनों में देखता आया है । 

गले में टँगा कैमरा, छोटे से बैग में कुछ कपड़े और कुछ नई किताबें; इस बार वह ज्यादा समान नहीं लाया है । वह ऐसे पसंदीदा सफर में ज्यादा सामान नहीं रखना चाहता । माँ इस बात के लिये उसे अक्सर आलसी करार दे देती है । पहाड़ों में कुछ ऐसा है जो उसे अपने पास खींचता रहता है और कुछ महीनों के अंतराल में अपने थकान को मिटाने या सच कहूँ तो अपनेआप को जिंदा रखने वह वापस इनकी गोदी में आकर छुप जाता है । हर पल दौड़ती भागती दुनिया की आपाधापी से दूर, महीन बंधनों से दूर, ढेर सारी आकांक्षाओं से दूर; अपने सपनों वाली दुनिया के बेहद करीब। 
~दीपक

Wednesday, 18 March 2020

लेकिन किसी जाते हुए को आप कहाँ तक रोकेंगे...

उस वक्त मुझमें ढेर सारा लड़कपन था, जिद थी, उसे हमेशा के लिए खोने का डर था और जज्बातों का गुबार से घिरा मैं; मैं बस किसी तरीके से उसको रोक लेना चाहता था लेकिन किसी जाते हुए को आप कहाँ तक रोकेंगे । पता है किसी  रिश्ते के लिए सबसे बुरा दौर वो होता है जब किसी को अपने सामने वाले से प्यार के लिए याचना करने की नौबत आ जाती है । उस वक्त यह समझना मुश्किल होता है कि सारे अनुनय विनय  के बाद भी, जो जा रहे अब उन्हें जाने देना चाहिए। लोग कहते हैं जो अपने हैं, जो सच में हमें प्यार करते हैं वो एक न एक दिन जरुर लौटकर आयेंगे । हम इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहते कि पुराने छूट रहे  हैं तो नए जरूर मिलेंगे, रात का अंधेरा गहरा रहा है तो सुबह भी जरूर होगी । अपने ऊपर भरोसा रखना, अपने दिली जज्बातों पर काबू रखना आसान नहीं होता है लेकिन दुनिया गवाह है वक्त बड़े-बड़े घावों को भी आसानी से भर देता है । 

Monday, 2 March 2020

सपने और हौसला


अक्सर मुझे लगता है कि ज़िन्दगी का सबसे अच्छा वक्त वो होता है जब आप पूरी ईमानदारी और लगन से किसी मंजिल के पीछे लग जाते है । 24 घंटों में आपका अधिकतम वक्त बस उसके लिए कर्म करते उसके बारे में सोचते गुजरने लगता है । यहां तक की दुनियादारी के और कामों के लिए इनके बीच से आपको वक्त चुराना पड़ता है । आप इतने मशगूल हो जाते हैं कि भूलने लगते हैं दिल टूटने वाले क्षणों को, आप भूलने लगते हैं लोगों के तानों को, आप भूलने लगते हैं दुनियादारी की हर उस चीज़ को जो आपको भटका सकती है और यदा-कदा यदि आप भटकते भी हैं तो  मंजिल का खयाल भर आपको वापस आपके रास्ते पर नियत कर देता है ...अपने सपने के लिए जीना निश्चित ही हर किसी की ज़िन्दगी के लिए बड़ा भाग्यशाली और अहम वक्त होता है ।शुक्रिया परिवार और उन मित्रों का  जिनके हौसले और विश्वास की प्रेरणा से मैं अपने सपने के लिए आगे बढ़ रहा हूँ...

Saturday, 11 January 2020

एक नदी; जिसका होकर वह पूरी ज़िन्दगी गुजार देना चाहता है ...

वह शुरुआत से ही किसी ऐसी नदी की तलाश में था जो उसकी प्यास बुझा सके । वह हमेशा से सोचता था कि जिस रोज उसकी तलाश पूरी हुई वह हमेशा के लिए उस एक नदी का ही हो कर रह जायेगा पर दिली जज़्बातों तले अक्सर उसने भ्रम में कई नालों को नदी समझ लिया । जिसने उसकी प्यास बुझाना तो दूर उसके निर्मल मन को दिन ब दिन और गंदा ही किया और भरोसे और सच्चाई की कहानियां अब उसे पूर्णतः काल्पनिक लगने लगी ।

यकीनन उसे अपने  प्यास की अति का आभास था जो उसे अपनी खोज के लिए हमेशा उद्वेलित करती थी और शायद इसीलिए एक वक्त के बाद उसने भ्रमों की असलियत और  सच्चाईयों से मुँह मोड़ना शुरू कर दिया । अब वह खुद रास्ते में मिलने वाले नालों को बेमन से अंगीकार कर अपने प्यास की तृप्ति की कोशिशें करने लगा। 
प्रारप्य की उलझनों के साथ उलझता वह आगे बढ़ता गया । कभी कभी निराशा उसे एक कदर जकड़ती कि उसे अपने दिली खयालों पर शक गहराने लगता। वह अपने आप से, अपने आस-पास से ढेर सारे प्रश्न करता; बड़बड़ाता, चिल्लाता, रोता लेकिन किसी एक नदी का ही होकर रह जाने वाली उसकी सोच कभी उसके जेहन से दूर न जा सकी । 
प्रकृति हमेशा से हमें यह संदेश देती रही है कि हर रात के बाद एक  सुबह जरूर दिखेगी अगर हम खुद को जिंदा रख पाये। 
वक्त बदला और इस बार एहसासों के एक अलग बहाव ने उसे अंदर तक भिगो डाला । एक ऐसा बहाव जिसने दिन ब दिन उसके ढेरों भ्रमों और अविश्वासों को दूर कर दिया । हर गुजरते दिन के साथ उसका भरोसा और मजबूत हो रहा है, यह वही नदी है जिसका होकर वह बाकी की ज़िन्दगी जीना चाहता है ...