Friday, 24 April 2020

कदमों की दूरियां और दिलों के मजबूत बंधन...

दोनों हर शाम अब बातें करने लगे हैं । कोशों दूर वो अपने अपने हिस्से के आसमान को निहारते, उसमें बनती किसी आकृति में एक जानी पहचानी तस्वीर को तलाशते मुस्कुराने लगे हैं । एक रोज वह यूँ ही बोल पड़ी पता है तुम मेरे लिए  चाँद जैसे हो जिसकी ठंडी रोशनी में मैं घंटों बैठी रह सकती हूं ..यूँ ही ..बेपरवाह होकर । उसकी यूँ ही कही उस बात को वह घंटों सोचता रहा । वह भी तो शाम की ठंडी हवावों में अकेले बैठ के उसे महसूस करता है और ऐसा लगता है जैसे उसका अक्स उसे छूकर उसके साथ अठखेलियाँ कर रहा है।  वो कोशों दूर थे लेकिन एक दूसरे को समझना, एक दूसरे को महसूस करना, एक दूसरे के खुशियों में खुश और दुख में संबल बनना उन्हें हर पल बांधे रखता था। जब दो दिल एक दूसरे के लिए धड़कना, एक दूसरे को प्यार करना, एक दूसरे के लिए जीना शुरू कर देते हैं तो कदमों की दूरियां दिलों के मजबूत बंधन के आगे ओछी हो जाती है। 
वह महत्वाकांक्षी है ,जीवन की दौड़ में बहुत कुछ हसिल करना चाहता है । उसकी इन बातों को सुन कर बहुत देर तक वह अपने लिए सपने बुनने लग जाती है । ऐसे सपने जिसमें वह अपने फैसलों के लिए आजाद होगी, अपने छोटी छोटी ख्वाहिशों को रंग दे सकेगी जो एक मध्यमवर्गीय परिवार में संभव नहीं हो पाता । उसे अपने मौजूदा हालात से शिकायत नही है लेकिन उड़ान वाले पंख उसे भी खूब भाते हैं । 
किसी शाम वो मिलने के लिए बच्चों जैसी जिद पर अड़ जाती तो उसे मनाने के लिए वह ढेर सारे बहाने ढूंढता है, कभी कभी वादे भी करता है। कुछ वक्त की रफ्तार में पूरे हो पाते हैं कुछ छूट जाते हैं । जो पूरे होते उन पलों को वो जी भर के जीते हैं और जो छूट जाते उन्हें अगले आने वाले दिनों के लिए अपने जेहन में संभाल लेते हैं । वो कहते हैं न हर चीज़ हमारे बस में नहीं लेकिन अपने मौजूदा पलों को जी भर के जीने का सलीका हमें थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन खुशियों से भर सकता है और ऐसा लगता है कि ये राज वो बखूबी जानते हैं ....
To be continued...
~दीपक 

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