Wednesday, 6 May 2020

स्वाभिमान और रिश्तों का रंग ...

ज़िन्दगी में कई बार स्थितियाँ हमें  उहापोह के बीच ला खड़ा करती है । सामने कुछ रास्ते होते हैं और हम आत्मसम्मान, रिश्तों की अहमियत, और ऐसे ही न जाने कितने एहसासों से घिरा महसूस करने लगते हैं । वह आज काफी देर शांत बैठी रही । कभी पार्क की घास में अपने हाथों को ऐसे सहलाती जैसे प्यार से किसी को दुलार रहा हो और कई बार उन्हें नोचने लगती । हमेशा उसका मन पढ़ लेने वाला चिराग आज चुपचाप बस उसे देखे जा रहा था । वह समझ रहा था कि आज किसी द्वंद में घिरी मिनी रास्ते की तलाश कर रही है । अचानक उनसे चिराग को देख कुछ बोलना चाहा और  फिर सोचने लगी । थोड़ी देर बाद वह वापस चिराग की तरफ मुड़ी और बोली " अपने आत्मसम्मान, स्वाभिमान को रिश्तों के ऊपर कितनी तवज्जो देनी चाहिए चिराग ? "
एकाएक अपनी तरफ आये इस प्रश्न के लिए चिराग पूरी तरह तैयार नहीं था । वह थोड़ी देर चुप रहा । थोड़ी देर सोचने के बाद वह दूर तक जाती सड़क को देखते हुए बोलने लगा " मिनी स्वाभिमान मानव का एक गुण है, यह हमें आत्मगौरव और आत्मसम्मान का बोध कराता  है। यह ऐसा गुण है जो हमें जाग्रत करता है और अपने ऊपर भरोसा करने की शक्ति देता है । और रिश्ते, महीन धागों के समान एहसासों से जुड़े रिश्तें जीवन में रंग भरते हैं । हमें जीवन जीने का सलीका सिखाते है। रिश्ते जीवन के लिए बहुत अहम है । लेकिन जब इनमें टकराव की स्थिति आ जाय तो मेरा मानना है कि हमारे लिए सच और ईमानदारी की कसौटी पर इन्हें परखना जरूरी हो जाता है । क्योंकि सच हमेशा एक सा रहता है अडिग । और हमें यह बोध कराता है कि क्या रिश्तों का रंग फीका पड़ गया है या हम अपने अभिमान को हम स्वाभिमान समझने की भूल कर रहे हैं "। 

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