हम इंसान हैं । हांड़-मांस के पुतले में गढ़े, भावनाओं से सिंचित। धरती की खरबों की आबादी के होते हुए भी हम, हमारा व्यक्तित्व कई मायनों में एक दूसरे से अलग है । हमारे जन्म से लेकर वर्तमान तक कई सारे पहलू हैं जो हमको प्रभावित करते हैं और दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं । हम हर दिन अपने जीवन की होने वाली घटनाओं से बहुत सी बातें सीखते भी हैं और उनमें से बहुत सी बातें हमारे व्यवहार का निर्धारण भी करती है । हम सब कौशल, ज्ञान, किसी कार्य विशेष के लिए क्षमताओं, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिरता की स्थिति इत्यादि में मजबूत या कमजोर, अच्छे या बुरे हो सकते है लेकिन एक सत्यता जो कभी हमारा पीछा नहीं छोड़ती वह यह है कि हम कभी पूर्ण नहीं होते । हम सबमें कुछ अच्छाइयां तो कुछ कमियां बनी रहती है । इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि हमें उन कमियों को दूर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए इसका मतलब बस इतना सा है हमें अपनी अच्छाइयों के साथ अपनी बुराइयों को स्वीकार करना सीखना चाहिए । साथ ही साथ दूसरों के अंदर उनकी बुराइयों से परे उनकी अच्छाइयों को भी समझना और सम्मान देना चाहिए ।
किसी साथ रहने, साथ वक्त गुजारने के लिए जरूरी होता है एक दूसरे को समझना । एक दूसरे को मौके देना । अपनी किसी गलती के लिए माफी मांग लेना और औरों को माफ कर देना । प्यार की मिठास में ढेर सारी कड़वाहट घुल जाती है ..बस जरूरत होती है पहल करने की ।
~दीपक
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