यकीनन उसे अपने प्यास की अति का आभास था जो उसे अपनी खोज के लिए हमेशा उद्वेलित करती थी और शायद इसीलिए एक वक्त के बाद उसने भ्रमों की असलियत और सच्चाईयों से मुँह मोड़ना शुरू कर दिया । अब वह खुद रास्ते में मिलने वाले नालों को बेमन से अंगीकार कर अपने प्यास की तृप्ति की कोशिशें करने लगा।
प्रारप्य की उलझनों के साथ उलझता वह आगे बढ़ता गया । कभी कभी निराशा उसे एक कदर जकड़ती कि उसे अपने दिली खयालों पर शक गहराने लगता। वह अपने आप से, अपने आस-पास से ढेर सारे प्रश्न करता; बड़बड़ाता, चिल्लाता, रोता लेकिन किसी एक नदी का ही होकर रह जाने वाली उसकी सोच कभी उसके जेहन से दूर न जा सकी ।
प्रकृति हमेशा से हमें यह संदेश देती रही है कि हर रात के बाद एक सुबह जरूर दिखेगी अगर हम खुद को जिंदा रख पाये।
वक्त बदला और इस बार एहसासों के एक अलग बहाव ने उसे अंदर तक भिगो डाला । एक ऐसा बहाव जिसने दिन ब दिन उसके ढेरों भ्रमों और अविश्वासों को दूर कर दिया । हर गुजरते दिन के साथ उसका भरोसा और मजबूत हो रहा है, यह वही नदी है जिसका होकर वह बाकी की ज़िन्दगी जीना चाहता है ...
Waah bahut badhiya tripathiji....
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