आज महीनों बीत गए...... मौसम बदल गया, हवाएं
बेपरवाह हो चली , सूरज की किरणें
अपने जलवे बिखेरने लगी | हर रोज नये दिन ,
फिर
शामें ...और इंतजार में एक और रात; उम्मीद वही कि
गुजरा दौर आ जाय | वो चेहरे नई जिन्दगी में गुम और मै नये सपनों में गुम..... बस ये सपनों का
गुमशुदा अक्सर पुराने ख्यालों के गुमनाम सफ़र का
आदी हो चुका है | गुमनामी का सफ़र ...| याद आता है मुझे
वो पहली मुलाकात , दोस्ती की अर्ज , वो मेरी
बेपरवाही भरा अंदाज, वो रूखे से जवाब
, वो अनजानी मुलाकातें ,वो फॉर्मल वाली बातें , वो फेशबुक की घंटों की चैट , एक दुसरे की छोटी –छोटी
बातो की क़द्र, वो बढती नजदीकियां
, वो वो बात बात पर रूठना , फिर
वो मानना , मनवाना , वो नये नए
नाम , वो सरप्राइजेस के लिए महीनों –महीनों
तैयारियां , वो लड़ना , वो झगड़ना .................................हाँ मुझे याद आता है उन दिल
के करीब आ चुके चेहरों की नया अंदाज ,
बदले
वक्त के बहाव में बदले परायेपन की झलकें, उन
जानी पहचानी आखों की नजर अंदाजी ...... और
हाँ .....अंततः करीब होते हुए भी वो कोशों की दूरियां ... |
कभी कभी साहिर लुधियानवी
साहब की गज़ल की ये पंक्तियाँ गुनगुना लेता
हूँ “चलो एक बार से अजनबी बन जाय दोनों ...चलो एक बार फिर से ...” और
फिर नीद के आगोश में उस एक सुबह का इन्तजार
करता हूँ जब ये लाईने एक रोज मुकम्मल होगी , क्या पता
फिर अजनबी मुलाक़ात इस सफ़र को आसान और अजीज बना दे ............
(कहानी “आईने
का दर्द” से)
~दीपक
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