Source:: Deepak's Photography |
वह एक ख्वाब भर था .....हाँ हाँ वह ख्वाब ही था मैंने यह बात कई बार
खुद को बताई | वही करीब 3 बजे थे रात के | मै अधजगा बिस्तर पर ही लेटा था | बेचैनी
सी लग रही थी कुछ , जैसे अभी थोड़ी देर पहले किसी अपनी बड़ी प्यारी चीज को खो दिया
हो मैंने , वहीँ भीड़ भरे बाज़ार में | कभी – कभी चीजें खोने के बाद भी मन में एक
अजीब सा भरोसा रहता हैं , नही नही वह खो कैसे सकती है | मेरे साथ अक्सर ये होता है
और कई बार ये विश्वास सही ठहरा है | पर आज भरोसे का दूर-दूर तक नाम नही था | भरोसे
के नाम पर कुछ था तो बस ख्वाब ...| यह ख्वाब है सच्चाई नही | इन ख्वाबों की
बुनियादें झूठी ही तो होती हैं न ... क्यों ? कभी सच भी होते हैं क्या ?मुझे डर लग
रहा था या यूँ ही हाथ स्विच बोर्ड तक गया और मैंने लाइट ओन कर दिया | बिस्तर से उठा और बालकनी
में खड़े होकर दूर तक जाती सड़क को यूँ ही देखता रहा | सूनसान , खाली | वातावरण गर्म
तो नही था हाँ ठप हवावों के साथ जैसे सब कुछ शांत , ठप पड़ा था | मै वापस बिस्तर पर लौट आया | लाइट ऑफ कर दी |
कभी कभी मन करता है न काश ! इस बेचैनी से दूर कहीं से हवा का एक तेज झोका आता और हमें
उस अतीत में छोड़ जाता ताकि क्या पता कुछ
चीजों को हम ठीक कर लेंते ,किसी के ख़ुशी के खातिर ही सही थोड़ी देर और मना लेते ,
कुछ लोगों को प्यार दे देते , किसी के साथ थोडा ज्यादा बैठ लेते , किसी को सुनते
समझते , कहीं किसी के गले लग जाते और जी भर कर रो लेते | ठप पड़ चुकी किसी जानी
पहचानी दुनिया में फिर से सुबह सी ताजगी और जान ला देते |
~दीपक
No comments:
Post a Comment