ये दूरियां....
दूरियां !!!
कहते है दूरियां हमें
रिश्तों की असली समझ देती है , दूरियाँ
अपने अंदर कुछ ऐसे एहसास समेटें होती हैं
जो हमें अपनों के प्यार और आपसी रिश्तों की अनजानी मजबूती से हमें रूबरू करातीं हैं |
कितनी मजेदार बात है न !
पास होने पर ये एहसास कहीं खोये से रहतें हैं और दूरियों के जरा से बढ़ते ही न जाने कितनों दिलों में एक साथ दस्तक
दे जाते हैं |
हम आपस में किस तरह से जुड़े
हैं उस जुडाव का एहसास कराती हैं ये दूरियां .....
इतना ही नहीं कभी कभी ये
दूरियां हमें वर्तमान से अतीत तक जाने का रास्ता भी दे जाती हैं | रास्ता ! जो हमें मांझी की यादों के उस भंवर
में पंहुचा देता है जहाँ हम न जाने कितनी देर डूबते –उतराते रहते हैं |
किसी को माँ की आंचल में सर
छुपाये माँ से घंटों की गयी बातों का खयाल आता हैं , किसी को बहन के साथ छोटी –छोटी
की हुई झड़पों का खयाल आता हैं , किसी को दोस्तों के संग बिताये खुशनुमा पलों की
याद आती हैं ,तो किसी का जेहन एक कोमल प्यार भरे छुवन की याद से
महक उठता हैं |
कुछ हो ये यादें ,ये बीती बातें हमें सताती बहुत
हैं ये दिल में ऐसे मीठे दर्द को जगा जाती
, जो लाल आँखों से नीदों को गायब कर देती है , जो बहुतों की भीड़ में हमें खामोश कर
जाती है | कभी पूरा शरीर कम्पित हो उठता
है तो कभी शरीर के अनगिनत रोम दौड़ती बिजली के तेजी से रोमांचित हो उठतें हैं |
अजीब बात हैं न ! यही यादें
बीच –बीच हमारे चेहरे पर देर से टिकी
ख़ामोशी को हल्की मुस्कराहट में भी तब्दील कर जाती हैं |
दूरियों की पहली कड़ी है –विदाई
|
इस शब्द के सामने आते ही
कुछ आंशुओं भरी आँखों के साथ कुछ बेबस ,उदास चेहरों का खयाल आता है | दुनियां में
दो तरह के लोग होते हैं ; एक वे जो बड़े ही भावुक होते हैं और दूसरे वे जो दिल के
मजबूत होतें हैं | कुछ तो मजबूत होते है कुछ ; मजबूत होने का अभिनय करते हैं |
जब आपसी दूरियों की शुरुआत होती है चाहे –अनचाहे
ही उपजे कुछ दिली-एहसास भर्राए गले के साथ न जाने कहाँ से आँखों में आंसू की कुछ
बूदों को खींच लाते हैं |
ज्यादातर लोग इन एहसासों के
आग़ोश से खुद को बचा नहीं पातें , उनकी बेजुंबा नम ऑंखें उनकी बेबसी का इजहार कर ही
जाती हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो आँखों में भर आई मोती सी बूदों को कुछ देर के लिए
कहीं झुपाने के साथ-साथ भर्राए गले को कुछ देर के लिए संभाल लेते हैं पर ये ठहराव
ज्यादा लम्बा नहीं होता हैं , इनके भी आँशु फूटते हैं बस अंतर इतना होता है की इन
आंशुओं के दर्शक ये खुद और इनकी रुमालों तक सीमित होते हैं |
ऐसे समय में बड़ा अधूरा –अधूरा सा लगता है अपनों
के दूर जाने के साथ हमारा पूरापन जैसे खत्म हो जाता है | ऐसा लगता है जैसे शरीर का
कोई महत्वपूर्ण भाग कहीं खो गया है |
खास बात ये यादों की वजह से
उपजा एहसास सिर्फ वयस्कों में ही नहीं बल्कि बच्चे , युवा और बुजुर्ग हर वर्ग में
उभरता है और हर वर्ग इन्हे पूरा –पूरा
महसूस करता हैं | मुझे लगता है ये एहसास हर उस जीव के अंदर होता है जो कहीं-न-कहीं प्यार के
अनोखे एहसास से जुड़ा होता हैं
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विचार –दीपक.......
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