Saturday, 3 July 2021

टूटती, बिखरती बूदें ; टूटते, बिखरते ख्वाब

पढ़ते पढ़ते झपकी आ गयी थी | मैं जगी तो देखा बाहर बारिश हो रही थी | बारिश जिसका हम पिछले कई दिनों से सबसे ज्यादा इंतजार कर रहे थे | मैं उनींदी सी बारिश देखने लगी | नन्ही-नन्ही बूदें गिरती और टूट जाती | ऐसा लगता जैसे कितना कुछ सिमटा हुआ एक पल में बिखर गया हो | मैनें बालकनी में आगे बढ़कर,  गिरती हुई एक बूंद को अपनी हथेली में थाम लिया | मैं संभाल नहीं पाई और वह बूंद भी नीचे गिरकर टूट गयी | मैनें फिर से हथेली आगे की, इस बार मैं किसी भी कीमत पर एक सिमटी बूंद को टूटते हुए नहीं देखना चाहती थी | लेकिन थोड़ी देर में मुझे अपने पागलपन पर हंसी आने लगी | मैं खुद को रोक नहीं पायी और बारिश को महसूस करने बाहर निकल आयी | सड़क शांत थी, बस बारिश की आवाज एक धुन के समान आसपास फैल रही थी | मैं भीगती हुई चलती जा रही थी और हर कदम के साथ जैसे खुद के बुने किसी ख्वाब में गुम होती जा रही थी | वह पास होता है तो उसे इन्हीं नन्हीं बूदों की तरह अपने प्यार के सहारे समेट लेने का जी करता है | हम गले लगते हैं तो मन करता है कि कह दूँ कि मैं इस बची-खुची दूरी को और मिटा देना चाहती हूँ | एक रोज जब उसने मेरे होठों को चूम लिया तो मैं खुद को रोक नहीं पाई । उसकी बाहों में सिमटी हुई मैं, उसकी नजरों में जवाब तलाशते बोल गयी "अब इस जनम मैं तुमसे दूर नहीं रह पाउंगी" | अगले ही पल सब शांत हो गया था | उसकी खामोशी को देख मेरा डर गहराने लगा था | उसकी पकड़ कमजोर हो चुकी थी । मैं चाहते हुए भी और ज्यादा कुछ बोल नहीं पायी थी | उसके बाद से वो कम मिलने लगा । एक रोज उसने बताया कि उसे उसके किसी पुरानी दुनिया के सपने आते है । वो अक्सर उन सपनों में खोया नज़र आता फिर मैंने भी खुद को, अपने प्यार को कहीं समेटना शुरू कर दिया । आज जमीन से टकरा कर टूटती, बिखरती बूदों को देख वो बरबस याद आ रहा है | उसके होठों की मुस्कान, उसके हाथों की पकड़, उसके साथ बिताये ढेर सारे पल..........
~दीपक

Saturday, 26 June 2021

मैं अक्सर खो जाने के सपने देखता हूँ...

हम ज़िन्दगी में ढेर सारी उम्मीदों और कल्पनाओं के बीच उलझते रहते हैं | ये उलझनें कभी ज्यादा तो कभी कम भी हो सकती है लेकिन जीवन है तो कुछ न कुछ उलझने भी रहती जरूर हैं | आपाधापी रहती है  लेकिन इसी आपाधापी के बीच जीवन जीना और वो भी संतुष्टि और सुकून के साथ; ये एक कला है जो इंसान चाहते न चाहते सीख ही जाता है | जो नहीं सीख पाते वो अटक जाते हैं किसी अतीत के ख्याल या भविष्य के सपने के बीच | 
मैं अक्सर खो जाने के सपने देखता हूँ | क्षितिज की ओट में या आसमान में छाए बादलों के बीच या सागर की गहराई में | लेकिन अगले ही पल मेरा जी घबराने लगता है | अकेलेपन के डर से, जिम्मेदारियों के दबाव से या महत्वकांक्षाओं के भार से | मैं फिर सोचने लगता हूँ कि मैं खोना क्यूँ चाहता हूँ | क्यूं ; इस खूबसूरत दुनिया से, आसपास से, लोगों से; अनजान बन जाना चाहता हूँ , दूर चला जाना चाहता हूँ | फिर वापस मुझे याद आता है अपने जीवन के हर रिश्ते का वो पहला दिन जब अजनबीपन ही सबसे बड़ी पहचान होती है | वक्त के साथ ये अजनबीपन अपना रंग खोता जाता है और कोई अलग रंग हमें आपस में रंग कर एक कर देता है | 
पिछली कुछ रातों से ख्वाब फिर से उसके नाम हो रहें हैं | वह हँसती हुई आती है जैसे कोई रंगीन तितली पहली बार सैर को निकली हो , मेरे करीब आकर बैठ जाती है  और मैं फिर से उसी अतीत में पहुँच जाता है जहाँ हम साथ बैठ कर रंगीन तितलियों और फूलों को निहारा करते थे | मुझे उसकी मासूमियत से प्यार था और साथ रहते रहते कब उसकी आदत लग गयी पता ही नही चला | उसे मुझसे प्यार था या नहीं मैने कभी पूछा नहीं या सच कहूँ तो पूछने की जरूरत नहीं समझा, उस दिन भी नहीं जब उसने मुझे बताया अब उसे किसी और बगीचे के तितलियाँ और फूल ज्यादा अच्छे लगने है  | 
~दीपक

Tuesday, 20 April 2021

क्योंकि मांगने से कुछ नहीं मिलता ...

जीवन असीम संभावनाओं से भरा है । हम जो चाहे वो कर सकते हैं बशर्ते कि हम अपनी ऊर्जा को केंद्रित रख सके और लक्ष्य के प्रति ईमानदारी से समर्पित रहें। हम आकर्षक दिखना चाहते हैं उसके लिए जरूरी है हम अपने खानपान को संयमित और व्यायाम को नियमित रखें । हम हारना नहीं चाहते है इसके लिए जरूरी है हम अपनी जीत के लिए हर रोज एक कदम आगे बढ़ाते रहें । आपको जो पसंद है उसको हासिल करने के लिए खुद को तैयार करना बहुत जरूरी है अन्यथा अन्य पर निर्भरता जीवन से बहुत कुछ छीन लेता है ...क्योंकि बिना कीमत अदा किए मांगने से कुछ नहीं मिलता ....न दोस्ती, न प्यार, न अर्थ और न ही सम्मान ।

Tuesday, 23 March 2021

अगली किसी शाम और चाय पर मिलने तक.....

मैं बातूनी हूँ ऐसा वह कभी कभी हँस कर कहा करती है । मैं सच में बातूनी हूँ ये मुझे भी नहीं पता लेकिन हाँ ! उसके साथ रहते वक्त मुझे भी लगता है कि मैं थोड़ा ज्यादा ही बोलता हूं कारण शायद उसका सुनना है । वह बड़े चाव से सुनती है ऐसा लगता जैसे वह हर बात से जुड़ रही हो । वह बीच बीच में हल्का सा मुस्कुरा भी देती है । वह अक्सर कहती है कि मैं बातें बड़ी अच्छी करता हूँ और उसके अनुसार दुनिया के हर इंसान को मेरी बातें पसंद आती होंगी । वह बहुत कम बोलती है और खास कर तब और जब मैं उसके आस पास हुआ करता हूँ । कई बार उसकी गोदी में सर रखकर लेटे हुए मैंने उसे खोया हुआ पाया है । ऐसा लगता है जैसे वह अपने अतीत और वर्तमान के बीच का ढेर सारा सोचती हुई किसी ठहराव की तलाश में भटकती रहती है । ऐसा ठहराव जिसमें उसके सारे सवालों के जवाब मिल जाय । ऐसा ठहराव जो भले ही उम्र भर के लिए न हो पर उसके अतीत के दर्द को ज़ब्त कर सके । ऐसा ठहराव जो उसके वर्तमान को, उसकी भावनाओं को महसूस कर सके । मैंने कई बार चाहा कि वह मुझे भी अपने अंतर्द्वंद का हिस्सा बनाये, मुझसे वो सारी बातें कह दें जो उसने कई सालों से अपने अंदर परत दर परत जमा किये हैं । वो सारे दर्द , वो सारे सवाल । लेकिन मेरे जिद करने पर वह अक्सर कहती है कि आप करीब होते हैं तो मैं कुछ सोच नहीं पाती और मुझे भी लगता है कि उसका दिल जिस ठहराव की तलाश में है उस तलाश को मैं पूरा नहीं कर पाता ।
हमें मिले ज्यादा दिन नहीं हुए । चाय से उसे इश्क़ है और अक्सर हम चाय के बहाने मिलते आये हैं । यहां तक कि हमारी पहली मुलाकात भी चाय के सहारे से ही हुई थी । एक शाम चाय पीने के बाद किसी खुशख़याली में हमने एक दूसरे को गले लगा लिया । हम एक दूसरे के बहुत करीब थे और एक चुंबन हमें और करीब बांधता जा रहा था । मैं उस शाम वापस नहीं आ पाया और रातभर हम खाली आसमान में एक चित्र उकेरते रहे ।
हम फ़ोन पर बातें बहुत कम करते है । कभी कभी वह अपनी भावनाओं को कुछ शब्दों में छिपाकर मुझे भेज दिया करती है । एक रोज उसने बताया कि वह मुझे प्यार करने लगी है । हर इंसान चाहता है कि उसे कोई प्यार करे और मैं भी सबसे अलग नहीं हूं लेकिन अतीत की चोट के बाद से मैं किसी का पूरा नहीं हो पाया या यूं कहूँ कि मैं किसी का पूरा होना नहीं चाहता, किसी पर पूरा भरोसा नहीं कर पाता, मैं वक्त के साथ बँटता रहा हूँ; यह बात मैंने उससे उसी रोज कह दी । उसने कहा कि वह मुझे छोड़ नहीं सकती लेकिन मुझे बँटा हुआ स्वीकार करके खुद की भावनाओं के साथ न्याय नहीं कर पायेगी। मुझे उसकी भावनाओं की सच्चाई पर कोई शक नहीं और मुझे यह भी पता है कि वह अब भी मुझमें वह पूरापन तलाशती रहती है लेकिन मैं अब भी बँटा हुआ उसके सामने खड़ा दिखता हूँ।
हम किसी शाम चाय पर मिलते हैं । रात भर आसमान में एक चित्र उकेरने की कोशिशें करते हैं और सुबह होने से पहले उस चित्र को बिगाड़ कर अपनी अपनी दुनियावों में खो जाते है । अगली किसी शाम और चाय पर मिलने तक.....
~दीपक

Thursday, 18 February 2021

मैं वक्त के साथ बँटता जा रहा हूँ ....

अक्सर मुझे लगता है की मैं वक्त के साथ बँटता जा रहा हूँ , अनेकों हिस्सों में । कभी कभी मुझे डर लगता है कि मैं शायद इस जन्म में समूचा किसी का हो ही नहीं पाऊंगा । पता है जब तुम थी तो मैं पूरा था; अपनेआप में भी और तुम्हारे लिए भी लेकिन जब से तुम गयी, मेरे भीतर अधूरापन गहराता गया और किसी पूरेपन की तलाश में मैं बंटता गया। मुझे लगता है कि किसी का पूरा हो जाने के लिए उस पर पूरा विश्वास करना पड़ता है और अब मैं किसी पर पूरा विश्वास नहीं कर पाता हूँ शायद इसीलिये मैं समूचा किसी का हो नहीं पाया। ऐसा नहीं है कि मैंने फिर किसी से जुड़ने की कोशिश नहीं की पर जुड़ाव की कड़ी में फिर भरोसे की कमी आड़े आने लगती है और मेरा जुड़ाव पूर्ण समर्पण की बजाय एक औपचारिकता भर रह जाता है । जहां फिक्रमंदी तो होती है, थोड़े एहसास भी होते हैं लेकिन मैं वक्त नहीं देना चाहता और वक्त की कमी रिश्ते को नीरस बना देती है और एक नीरस रिश्ता धीरे धीरे बोझिल होता जाता है । कभी कभी मुझे लगता है कि अब मैं स्वार्थी और चालाक होता जा रहा हूँ । फायदे और नुकसान के गणित के सहारे मैं नए रिश्तों को तौलता रहता हूँ । अतीत की तलाश में यहां वहां भटकता रहता हूँ और बँटता रहता हूँ थोड़ा किसी के लिए ...तो थोड़ा किसी और के लिए ....
~दीपक