मैं बातूनी हूँ ऐसा वह कभी कभी हँस कर कहा करती है । मैं सच में बातूनी हूँ ये मुझे भी नहीं पता लेकिन हाँ ! उसके साथ रहते वक्त मुझे भी लगता है कि मैं थोड़ा ज्यादा ही बोलता हूं कारण शायद उसका सुनना है । वह बड़े चाव से सुनती है ऐसा लगता जैसे वह हर बात से जुड़ रही हो । वह बीच बीच में हल्का सा मुस्कुरा भी देती है । वह अक्सर कहती है कि मैं बातें बड़ी अच्छी करता हूँ और उसके अनुसार दुनिया के हर इंसान को मेरी बातें पसंद आती होंगी । वह बहुत कम बोलती है और खास कर तब और जब मैं उसके आस पास हुआ करता हूँ । कई बार उसकी गोदी में सर रखकर लेटे हुए मैंने उसे खोया हुआ पाया है । ऐसा लगता है जैसे वह अपने अतीत और वर्तमान के बीच का ढेर सारा सोचती हुई किसी ठहराव की तलाश में भटकती रहती है । ऐसा ठहराव जिसमें उसके सारे सवालों के जवाब मिल जाय । ऐसा ठहराव जो भले ही उम्र भर के लिए न हो पर उसके अतीत के दर्द को ज़ब्त कर सके । ऐसा ठहराव जो उसके वर्तमान को, उसकी भावनाओं को महसूस कर सके । मैंने कई बार चाहा कि वह मुझे भी अपने अंतर्द्वंद का हिस्सा बनाये, मुझसे वो सारी बातें कह दें जो उसने कई सालों से अपने अंदर परत दर परत जमा किये हैं । वो सारे दर्द , वो सारे सवाल । लेकिन मेरे जिद करने पर वह अक्सर कहती है कि आप करीब होते हैं तो मैं कुछ सोच नहीं पाती और मुझे भी लगता है कि उसका दिल जिस ठहराव की तलाश में है उस तलाश को मैं पूरा नहीं कर पाता ।
हमें मिले ज्यादा दिन नहीं हुए । चाय से उसे इश्क़ है और अक्सर हम चाय के बहाने मिलते आये हैं । यहां तक कि हमारी पहली मुलाकात भी चाय के सहारे से ही हुई थी । एक शाम चाय पीने के बाद किसी खुशख़याली में हमने एक दूसरे को गले लगा लिया । हम एक दूसरे के बहुत करीब थे और एक चुंबन हमें और करीब बांधता जा रहा था । मैं उस शाम वापस नहीं आ पाया और रातभर हम खाली आसमान में एक चित्र उकेरते रहे ।
हम फ़ोन पर बातें बहुत कम करते है । कभी कभी वह अपनी भावनाओं को कुछ शब्दों में छिपाकर मुझे भेज दिया करती है । एक रोज उसने बताया कि वह मुझे प्यार करने लगी है । हर इंसान चाहता है कि उसे कोई प्यार करे और मैं भी सबसे अलग नहीं हूं लेकिन अतीत की चोट के बाद से मैं किसी का पूरा नहीं हो पाया या यूं कहूँ कि मैं किसी का पूरा होना नहीं चाहता, किसी पर पूरा भरोसा नहीं कर पाता, मैं वक्त के साथ बँटता रहा हूँ; यह बात मैंने उससे उसी रोज कह दी । उसने कहा कि वह मुझे छोड़ नहीं सकती लेकिन मुझे बँटा हुआ स्वीकार करके खुद की भावनाओं के साथ न्याय नहीं कर पायेगी। मुझे उसकी भावनाओं की सच्चाई पर कोई शक नहीं और मुझे यह भी पता है कि वह अब भी मुझमें वह पूरापन तलाशती रहती है लेकिन मैं अब भी बँटा हुआ उसके सामने खड़ा दिखता हूँ।
हम किसी शाम चाय पर मिलते हैं । रात भर आसमान में एक चित्र उकेरने की कोशिशें करते हैं और सुबह होने से पहले उस चित्र को बिगाड़ कर अपनी अपनी दुनियावों में खो जाते है । अगली किसी शाम और चाय पर मिलने तक.....
~दीपक
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