Monday, 18 July 2016

मेरे आईने ; तू टूटा मै भी बिखर गयी हूँ

Source : : Deepak's Photography


मेरे आईने  ; तू टूटा मै भी बिखर गयी हूँ


तू था तो कुछ देर बातें हो जाती थी
खुद से अपनी आवाज में
तू था तो जी भर मुस्कुरा लेती थी  
अपनी परछाईं में  

वह दिन बिसरता नही
एक रोज जब टूट गये तुम
थोड़ी आवाज हुई थी
पर मेरे कान बहरे थे उस वक्त
या शायद नींद में

तुम साथ और मै पूरी
तुम्हारी कद्र नही सोची
आज टूटे हजार टूकड़ों
सबमें अपना अंश देखकर
वाकई डर जाती हूँ  
 घुटने लगती हूँ खुद में

अकसर सच बोलती थी
हाँ ! डर था पकड़े जाने का
पर उस रोज झूठ बोला था 
जब किसी ने कहा
मुझे प्यार हो गया है तुमसे

तू टूटा मै भी बिखर गयी हूँ
हजारों टूकड़ों में
मन नही करता अब एक कर लूँ
एक साथ बिन तुम्हारे
समूचे को जी नही पाउँगी  

~दीपक

Sunday, 17 July 2016

एक ख्वाब....थोड़ी बेचैनी और.... और सब ठप




Source:: Deepak's Photography


वह एक ख्वाब भर था .....हाँ हाँ वह ख्वाब ही था मैंने यह बात कई बार खुद को बताई | वही करीब 3 बजे थे रात के | मै अधजगा बिस्तर पर ही लेटा था | बेचैनी सी लग रही थी कुछ , जैसे अभी थोड़ी देर पहले किसी अपनी बड़ी प्यारी चीज को खो दिया हो मैंने , वहीँ भीड़ भरे बाज़ार में | कभी – कभी चीजें खोने के बाद भी मन में एक अजीब सा भरोसा रहता हैं , नही नही वह खो कैसे सकती है | मेरे साथ अक्सर ये होता है और कई बार ये विश्वास सही ठहरा है | पर आज भरोसे का दूर-दूर तक नाम नही था | भरोसे के नाम पर कुछ था तो बस ख्वाब ...| यह ख्वाब है सच्चाई नही | इन ख्वाबों की बुनियादें झूठी ही तो होती हैं न ... क्यों ? कभी सच भी होते हैं क्या ?मुझे डर लग रहा था या यूँ ही हाथ स्विच बोर्ड तक गया और  मैंने लाइट ओन कर दिया | बिस्तर से उठा और बालकनी में खड़े होकर दूर तक जाती सड़क को यूँ ही देखता रहा | सूनसान , खाली | वातावरण गर्म तो नही था हाँ ठप हवावों के साथ जैसे सब कुछ शांत , ठप पड़ा था |  मै वापस बिस्तर पर लौट आया | लाइट ऑफ कर दी | कभी कभी मन करता है न काश ! इस बेचैनी से दूर कहीं से हवा का एक तेज झोका आता और हमें  उस अतीत में छोड़ जाता ताकि क्या पता कुछ चीजों को हम ठीक कर लेंते ,किसी के ख़ुशी के खातिर ही सही थोड़ी देर और मना लेते , कुछ लोगों को प्यार दे देते , किसी के साथ थोडा ज्यादा बैठ लेते , किसी को सुनते समझते , कहीं किसी के गले लग जाते और जी भर कर रो लेते | ठप पड़ चुकी किसी जानी पहचानी दुनिया में फिर से सुबह सी ताजगी और जान ला देते | 
~दीपक 

Saturday, 16 July 2016

ये रिमझिम बारिश , एक छतरी और हम दो ...








ये रिमझिम बारिश , एक छतरी और हम दो ...

वैसे पहले ही बता दूँ ये सीन बाद का था , शुरू में जब हम मिले थे तो तपती धूप थी और हम दो अलग और हमारे पास अलग-अलग दो छतरियाँ थी | वक्त बीतता रहा , हम बड़े होते रहे और कहीं आड़ में छुपा हमारा प्यार भी जवां होता रहा | इस वक्त के अंतराल में कब हमने उस दो एक कर लिया पता ही न चला | कभी खाने की प्लेटों में , कभी आइसक्रीम की मिठास में , कभी पानी को बोतलों में , कभी अपने खुशियों में तो कभी अपने दुःख में कब हमने दो को एक कर लिया था | साथ खाते –खाते ये निवाले भी नही समझ पाए कि कब ईनपें आधा अधिकार तुम्हे हाँ ! अपने प्यार को दे दिया | मौसम भी कब तक तपन लिए फिरता , एक रोज बादल गरजे , आधियाँ आई और ये रिमझिम बारिश , एक छतरी और हम दो ......ओह सॉरी दो छतरी और हम एक ....

~दीपक

Tuesday, 5 July 2016

चलो एक बार से अजनबी बन जाय ..









आज महीनों बीत गए...... मौसम बदल गया, हवाएं बेपरवाह हो चली , सूरज की किरणें अपने जलवे बिखेरने लगी | हर रोज नये दिन , फिर शामें ...और इंतजार में एक और रात; उम्मीद वही कि गुजरा दौर आ जाय | वो चेहरे नई जिन्दगी में गुम  और मै नये सपनों में गुम..... बस ये सपनों का गुमशुदा अक्सर पुराने ख्यालों के गुमनाम सफ़र का आदी हो चुका है | गुमनामी का सफ़र ...| याद आता है मुझे वो पहली मुलाकात , दोस्ती की अर्ज , वो मेरी बेपरवाही भरा अंदाज, वो रूखे से जवाब , वो अनजानी मुलाकातें ,वो फॉर्मल वाली बातें , वो फेशबुक की घंटों की चैट , एक दुसरे की छोटी छोटी बातो की क़द्र, वो बढती नजदीकियां , वो वो बात बात पर रूठना , फिर वो मानना , मनवाना ,  वो नये नए नाम , वो सरप्राइजेस के लिए महीनों महीनों तैयारियां , वो लड़ना , वो झगड़ना .................................हाँ मुझे याद आता है उन दिल के करीब आ चुके चेहरों की नया अंदाज , बदले वक्त के बहाव में बदले परायेपन की झलकें, उन जानी पहचानी आखों की नजर अंदाजी ...... और हाँ .....अंततः करीब होते हुए भी वो कोशों की दूरियां ... |
 कभी कभी साहिर लुधियानवी साहब की गज़ल की ये पंक्तियाँ गुनगुना लेता हूँ चलो एक बार से अजनबी बन जाय दोनों ...चलो एक बार फिर से ... और फिर नीद के आगोश में उस एक सुबह का इन्तजार करता हूँ जब ये लाईने एक रोज मुकम्मल होगी , क्या पता फिर अजनबी मुलाक़ात इस सफ़र को आसान और अजीज बना दे ............
 (कहानी आईने का  दर्दसे)
 ~दीपक