आज की इंसानी कौम लाखों करोड़ो वर्ष पहले जानवर हुआ करती थी . दो नहीं चार पैरों वाली . अपनी जरूरत कहें या जिद! किसी न किसी नाते इस कौम ने अपने दो पैरों को हाथ बना लिया . प्रकृति इसमें सहयोग में थी या वह विरोध में इस बात को पुख्ता तौर पर साबित कर पाना आसान नहीं. पर एक बात जरूर है कि इसने इस कौम के जरूरत के हिसाब से नए प्रयोगों को करने और सीखने की ललक को आगे ही बढ़ाया. इंसानी कौम जो मूलतः जानवर ही थी धीरे धीरे सामाजिक विकास के सहारे सभ्य होती गई. इसने नियम कानून बनाए , तौर तरीके विकसित किए ताकि एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज विकसित हो सके .
जानवरों और इंसानी कौम में फ़र्क क्या है ... फर्क है सिर्फ बुद्धि और बल के अनुपात का . और आज भी जब-जब यह अनुपात अपना संतुलन खोता है इंसान वापस जानवरों जैसा व्यवहार करने लगता है . चाहे वह खबर किसी नवजात के रेप का हो या किसी अपने की दुर्दांत हत्या और शव के क्षत विक्षत करने या जातीय द्वेष के बदले एक भीड़ के द्वारा महिलाओं का घिनौना अपमान हो . ऐसे अन्य जघन्य मामले जहां मानवता और संवेदनशीलता दम तोड़ती नज़र आती है , यह सब एक कौम के विकास की असफलता को ही दर्शाता है .
~दीपक
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