यह उस सफ़र जैसा है जो लगता है कि बस अगले कुछ ही दिनों में पूरा हो जाएगा लेकिन कुछ रोज चलकर बाहर देखो तो दिखता है कि अभी एक लंबी दूरी बची हुई है । कभी कभी तो इस बात का भी संशय होने लगता है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ भी रहे हैं या नहीं ।
कितनी ही चीजों, इच्छाओं, आकांक्षाओं को उस एक मंज़िल के नाम पर , उस एक सफ़र के पूरा होने के बिनाह पर हम मन के किसी कोने में दबाते जाते हैं । कभी मन ऊबता है तो लालच देते हैं, सफ़र के पूरा होने की खुशी का। कभी मन बहकता है तो वापस उसे एक समयसीमा की डोर पकड़ा देते हैं । पर कभी कभी नकारात्मकता भी हावी होने लगती है जो याद दिलाती है उन असफलताओं की, ऊबते दिनों की, समझौते भरी रातों की । फिर भी ढेर सारी उलझनों के बीच हमें एक किनारा थाम के चलते तो रहना ही है ...क्योंकि एक सुबह जब चलना शुरू किया था तो पीछे एक अहम वजह थी । एक सपना देखा था । जो आज भी जेहन में जिंदा है और जिसके पूरा होने का भरोसा ऐसा है ....जो कभी खत्म होने का नाम नहीं लेता ।
~दीपक
Behatreen as always
ReplyDeleteLajavaab lekhani
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