“अच्छा तो तुमने वर्णमाला सीख ली , और तुम्हें शब्द बनाना भी आ गया, चलो आज तुम्हे इमला लिखना सिखाते है” मैंने मुस्कराते हुए 8 वर्षीय अजमत से कहा | “इमला ! ये क्या होता है सर जी ” अपनी हल्की कोमल आवाज और आश्चर्य भरी नज़रों से अजमत मेरी तरफ देखने लगा | “ अभी सब जान जाओगे अजमत ” कहते हुए मैंने अजमत की कॉपी के उपरी हिस्से में हेडिंग लिख दी .. “इमला” | एक वक्त को बड़ा अजीब लगा , मै खुद में ही टटोलने लगा , कहीं मैंने गलत तो नहीं लिख दिया | पर अगले ही पल अपनी इस हरकत पर खुद ही मुस्कराने भी लगा | कैसे भूल सकता हूँ भला .. वो दिन, जब गर्मियों की दोपहरी में इंटरवल के बाद इमला बोला जाता था| हमें घने आम के पेड़ों की छाँव तले दूर दूर बैठा दिया जाता था | और गुरु जी द्वारा वो सारे जतन किये जाते ताकि हम नक़ल न कर सके| कभी –कभी तो हम नक़ल करने के लिए महत्वाकांक्षी, आशीर्वाद और ऐसे न जाने कितने कठिन शब्दों की पर्चियां बनाकर लाते पर गुरूजी की पैनी निगाह के आगे ये हथकंडे हर बार धराशाही हो जाते , और मन दबाकर हमें अपनी गलतियों के लिए छड़ियाँ खानी पड़ती | पर हम भी हार मानने वालों में से कहाँ थे , हर बार छड़ियों से बचने के लिए नए –नए तरीके इजाद कर ही लेते |
इन मामलों में शुरुआत से ही बड़ा दबदबा था अपना | जब पर्चियों वाले तरीके फेल हुए तो हमने नया तरीका ढूँढा | हम अन्य क्लासों से अंतरिम सूत्रों के जरिये ये पता लगा लेते कि आज किस पाठ से इमला बोला जाना है... बस फिर ! शुरू रट्टेबाजी |
कभी –कभी गुरु जी के सख्त रवैये पर गुस्सा भी आती , पर जब सही –सही इमला लिख लेने पर सबके सामने मुस्कराते हुए गुरूजी पीठ थपथपाते तो ऐसी गुस्साएं छू –मंतर हो जाती |
मैंने बोलना शुरू किया और अजमत के उगलियों में फंसा पेन नए शब्दों के आकार में चलने लगा कुछ थोड़े गलत, कुछ पूरे तो कुछ बिलकुल सही |
गुरु जी कहा करते गलतियाँ हमारी सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण शिक्षक होती है | ये हर वक्त हमें सिखाती है ,उम्र के हर मोड़ पर, जिन्दगी के हर पहलू पर |
तब ये बातें अजीब लगती , ऐसा लगता जैसे गुरूजी किसी किताब की पढ़ी बातें बोल रहें हैं | पर आज 12-14 साल पुराने उस वक्त की बातें समझ आती है | गलतियाँ भी कितनी जरुरी है न ! गलतियों का किरदार कितना महत्वपूर्ण है इस दुनिया को जानने , समझने,परखने और नए आगाज़ के लिए |
~ दीपक