Thursday, 21 November 2019

एक रंग बिरंगी तितली

उसे मुझसे प्यार था या नहीं मुझे नहीं पता पर उसे मेरा साथ यकीनन पसंद था । हम साथ होते तो दुनिया थोड़ी अलग लगने लगती थी । पत्तों की सरसराहट, ठंडी हवावों की सिहरन, चिड़ियों की चहक सब बड़े करीब से सुनाई देने लगता था । एक रोज पत्थरों की किसी पुरानी इमारत को निहारते रुमानियत में खोये हमारे होंठो को किसी चुम्बन ने बाँध लिया था  । उस रोज हम बहुत करीब आ गए थे । देर शाम तक उसकी गोदी में सर रखे मैं बड़ी देर तक कुछ सोचता रहा था और उंगुलियां मेरे बालों को सहलाती रही थी । शाम और ढली तो अंधेरा हमें और करीब लाने की कोशिशें करने लगा पर उसे घर जाने को देर होने लगी थी। उस रात हम अपने अपने हिस्से के आसमान को निहारते रहे थे।


सुबह हुई तो वह एक रंग बिरंगी तितली बन गयी थी, जिसको हर कोई अपनी मुट्ठी में बन्द कर लेने के सपने देखने लगा था । सपने मैं भी देखता था लेकिन मैंने कभी उसे मुठ्ठी में बंद नहीं किया । वह देर तक मेरी हथेली पर बैठी रहती पर मुझे उसके नए रंग बिरंगे पंख नजर नहीं आते थे। वह दिन भर जी भर के आसमान में उड़ाने भरती मैं हथेली फैलाये शाम होने का इंतजार करता । हम मिलते ही आपनी अपनी थकानें भूल जाते । वो मुझे दिन भर के अपने किस्से सुनाती और देर तक मुस्कुराता रहता । थोड़ी देर में अंधेरा गहराने लगता और वो अपने घर चली जाती । मैं भी किताबों की रोशनी में सपने बुनने में लग जाता था ।  वह चाहती थी कि किसी रोज मैं उसे मुट्ठी में बंद कर लूं पर मैं खुद को उसकी आजादी छीनने का हकदार नहीं मानता था । मैं चाहता था.....
(लिखी जा रही अधूरी कहानी का अंश )
To be continued
~दीपक

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