~दीपक
यहाँ बातें करता हूँ मै कुछ दिली जज्बातों की , माझी की कुछ यादों की , राहों में ठिठके रह गए बेबस दरख्तों की , कुछ हर रोज जीते कुछ खट्ते मीठे एहसासों की .... . . बड़ा प्यारा लगता है मुझे ये एहसासों का कारवाँ....बस इन्हे शब्दों में ढालने की कला तलाश रहा हूँ....सच कहूँ अँधेरे में डूब चुकी कुछ अनजान बस्तियों के लिए रौशनी तलाश रहा हूँ .....
Tuesday, 19 November 2019
एक दूसरे की जरुरत बनते-बनते आदत बन गए..
नवंबर महीने के आखिरी दिन थे । सर्दियाँ ठंडी हवाओं के सहारे दस्तक दे चुकी थी । दिन ब दिन शामें ठंडी होती जा रही थी और इन्ही ठंडी शामों में हम एक दूसरे के करीब आते, एक दूसरे को प्यार करना सीख रहे थे । कभी हाथ में हाथ डाले दूर तक चलते हुए एक दूजे की छोटी छोटी खुशियों के बहाने ढूंढते, कभी चाय की चुस्कियों के साथ पार्क के पौधों पर फैली ओंस को निहारते हुये, कभी गुनगुनी धूप सेंकते एक दूजे के स्पर्श को महसूस करते हुए। हमें पता भी नही चला कि कैसे हम एक दूसरे की जरुरत बनते-बनते एक दूसरे की आदत बन गए ।
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