Saturday, 4 August 2018

दुनिया दोस्तों की..........

माँ की गोद से उतरा तो परिवार का साथ मिला। जहाँ घर की चहारदीवारी मेँ एक दुनिया बसती थी, मेरे अपनो की। जहाँ तोतली आवाज मे मैने बोलना सीखा, गिरते, लड़खड़ाते अपने नन्हे पैरो पर खुद को सम्भालना सीखा ।
एक पँछी जिसने हाल ही मेँ उड़ना सीखा है और अपने नये उत्साह और उमंग के बूते ऊँचे आसमाँ मे उड़ने के सपने बुनता है उसी भाँति मै भी अपने पैरो पर चलते एक नये दुनिया मेँ निकल पड़ा- मेरे दोस्तो की दुनिया।


मेरे बचपन से जवानी तक साथ देते मेरे हमसफर साथियो की दुनिया।
जिनके साथ मैने कभी गुल्ली डण्डे कभी आँख-मिचौली कभी चोर-पुलिस के खेल खेले ।
जिनके साथ कागज की नाँव पर बैठ समन्दर पार करने के सपने देखे।
जिनके साथ हँसता-खेलता मेरा बचपन बीता।
थोड़े बड़े हुए तो इन्ही के साथ लकड़ी की स्लेट और स्याही थामे अपने विद्यालय की डगर पहचाना।
अब मै एक नयी जगह था जहाँ मै मेरी स्लेट पर उकेर कर बनाये गये अनजान शब्दोँ के साथ मै कई अनजान चेहरो से भी मिला । जो आज मेरे अपने बन चुके शब्दो की भाँति मेरे जाने पहचाने मेरे अपने बन गये है।

घर पर मेरे अपने थे जिनसे मेरा खून का रिश्ता था जिन रिश्तो के कई नाम भी थे और बाहर मेरे दोस्तोँ का साथ । इन सबसे मेरा खून का रिश्ता नही था और न ही इनसे रिश्ते का अलग-अलग नाम ही था पर इनसे मेरा लगाव ,मेरा अपनापन मेरे खून के रिश्तो से कम न था।
आज भी बिना इनके मेरी महफिले, मेरी खुशियाँ मेरी हँसी अधूरी होती है। कभी हम एक -दूसरे पर हँसते है , एक दूसरे को चिढ़ाते है पर कुछ भी हो हम एक दूसरे की आँखोँ मे आसूँ नहीँ देख सकते है। 
हम एक दूसरे से नाराज भी होते है पर हमारा दिल ज्यादा दिनोँ तक दूरी बर्दाश्त नहीँ कर पाता और फिर हम बीती कड़वी बातोँ को भूल एक हो जाते है। खुशियो के पल हम साथ मिल कर बिताते है और जो दुख की घड़ी किसी एक पर भी आती है तो हम सबके कन्धे सहारे के लिए तैयार मिलते है।


दोस्त बहुत ही अनमोल होते है। आज के समय मे कई लोग एक दूसरे को दोस्त तो कहते है मगर समय आने पर दोस्ती के पवित्र रिश्ते की धज्जियाँ उड़ाने से नहीँ चूकते।
मै जब भी अकेला होता हूँ मुझे अपने दोस्तो का महत्व बखूबी समझ आ जाता है।
मैने उनसे बहुत कुछ सीखा है इस बात की हकीकत मै स्वीकार करता हूँ।
मुझे अपने दोस्तो पर गर्व है। मै अपने सभी दोस्तो को तहे दिल से शुकरिया अदा करता हूँ उनके अतुल्य प्यार , साथ और सम्मान के लिए।

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दीपक त्रिपाठी

Monday, 23 July 2018

आसमान से अपने तल्ख़ रिश्ते...

अचानक वह फिर जिंदा हो गया । चारों तरफ घिर आया अंधेरा रात होने का अहसास दे रहा था ।  आज वह  फिर किसी उम्मीद के सहारे आसमान से अपनी तल्ख़ी मिटाना चाहता था । अकेले में  आसमान की तरफ देखना, उसे ढेर सारे खयालात से भर देता है । कभी वह बहुत खुश तो कभी बहुत दुःखी हो जाता है। अकसर उसका मन करता है कि इन टिमटिमाते तारों से रंगे आसमान को किसी और रंग में रंग दे, एक ऐसा रंग जो हर किसी को दिखाई देता हो, एक ऐसा रंग जो हर किसी को पसंद हो । वह बारिश वाली उस रात का इंतजार करता है जब आसमान तारों की टिमटिमाहट से आजाद होगा और वह बारिश की बूदों में रंग घोलकर इस आसमान को एक अलग रंग में रंग डालेगा। लेकिन एक अलग रंग ।


अब वह उस अलग रंग की तलाश में जुट गया है। वह बड़ी देर से उस अलग रंग के बारे में सोचता जा रहा है । उसे बस इतना पता है कि उसे एक ऐसा रंग चाहिए जो हर किसी को पसंद हो, जो हर किसी को दिखाई देता
हो । उधेड़बुन उसका ध्यान आसमान से भटका देती है पर अब भी वह अपने मरने को याद रखता है उसे पता है कि कुछ मोहलत के बाद उसे वापस मर जाना है लेकिन आसमान से अपने तल्ख़ रिश्ते का असल मुद्दा वह भूल जाता है । अब उसे एक साथी की तलाश है जो उसे उन रंग या रंगों की खोज को पूरा करने में मदद कर सके। वह उन तारों से भी बात करना चाहता है जिनके गायब होने के लिए वह बारिश वाली रात का इंतजार कर रहा था।
जो अकेलापन उसे खुशी देता था वह उससे दूर होना चाहता है । वह अब भी किसी साथी के बारे में सोच रहा है ।
बीतता वक्त उसके इस उधेड़बुन से बेखर बीतता जा रहा है । रात बीतने को आतुर है। शायद कुछ तारों का गायब होना इन सबका संकेत दे रहा है लेकिन वह इस बार अकेले नहीं मरना चाहता । अब अकेले मरने में उसे अजीब सा डर लग रहा है ।
~दीपक

Wednesday, 18 April 2018

डर का साक्षात्कार

Image source : Internet


:मुझे डर लगता है |

:क्यों ?
:पता नहीं बस ऐसा लगता है अगले ही पल कुछ अजीब हो जाएगा ।

:ऐसा कब होता है ?
:जब मैं अकेला होता हूँ , मुझे आस पास लोगों की आवाजें नहीं सुनाई देती ऐसे समय । दिन की अपेक्षा रात में, उजाले की तुलना में अंधेरें में यह ज्यादा होता है । ऐसा लगता है अंधेरा मुझे खाने दौड़ता है ।

: आपको उजाला पसंद है या अंधेरा ?
: वक्त वक्त की बात है अच्छी नींद तो अंधेरें में ही आती है लेकिन अगर मैं अपने डर की बात करूं तो मुझे उजाला पसंद है ।

: उजाले में ऐसा क्या है जो आप उजाले को इतना पसंद करते हैं ?
: उजाले में हर चीज़ हकीकत सी लगती है मतलब भ्रम की गुंजाइश नही रहती । अंधेरें की अपेक्षा उजाला में जैसे एक असीम ऊर्जा होती है जिससे मेरा डर काफी हद तक गायब हो जाता है । उजाले में हर चीज़ साफ साफ दिखती है लेकिन अंधेरें में जैसे कुछ न कुछ छिपा हुआ सा लगता है जैसे कोई काली आकृति ।

: ये काली आकृति दिन के अंधेरें में भी बनती है या सिर्फ रात के अंधेरें में ?
:रात के अंधेरें में ज्यादा पर दिन के अंधेरें में कम ...नहीं नहीं मुझे लगता है शांत अंधेरें में ये ज्यादा होता है क्योंकि मैंने महसूस किया है कि अगर आस पास लोग हो और उनकी आवाज मुझे सुनाई दे रही हो तो ऐसे भ्रम (काली आकृति) नही दिखती ।

:आपको अकेले रहना पसंद है या लोगों के साथ ?
: ज्यादातर लोगों के साथ लेकिन मैं कुछ सार्थक अकेले ही कर पाता हूँ । मुझे भीड़ बुरी नही लगती । पर मुझे सुकून अकेले में ही मिलता है लेकिन ऐसे वक्त में मैं चाहता हूं कि मेरे आस पास कोई हो जरूर जो मुझे  disturb (जिस वक्त मैं कुछ कर रहा हूँ ) न करते हुए आस पास बना रहे, चाहे पास वाले कमरे में ही । जहां तक मैं खुद को जानता हूँ मैं मिलनसार हूँ मुझे लोगों से मिलना पसंद है लेकिन अपने काम के घंटों के अतिरिक्त समय में ।

: आपको दिन में कब कब डर लगता है ?
: जब मैं अकेले किसी बंद कमरे में होता हूँ, अंधेरा हो और आस पास लोगों की आवाज न सुनाई दे  रही हो या मुझे पता हो कि पास के कमरे में कोई नही है ।

: ठीक ऐसे वक्त क्या चीजें दिमाग में आती हैं किन चीजों का डर लगता है ?
: यह वक्त कर साथ बदलता रहता है। कभी लगता है कि दरवाजे के उस पार वह व्यक्ति है जिसकी लाश मैंने कुछ दिनों पहले देखी थी । कभी लगता है मेरे बिस्तर या कमरे में एक बहुत बड़ा सा सांप बैठा है जो मेरे आँख बंद करते ही मेरे सामने आ जायेगा या मुझे लपेट लेगा। कभी कभी लगता है कि अगर मैं इस बन्द कमरे में अकेले सो गया और बाहर भूकम्प या बाढ़ आ गयी या आग लग गयी  तो मुझे पता नहीं चलेगा।

: अच्छा ! मरने का डर लगता है ?
:नहीं , जहां तक मुझे लगता है ।

: जो चीजें ऊपर बताई आपने उनमें आजकल सबसे ज्यादा डर किस चीज़ से लगता है ?
: सांप ।

:क्यूं ?
: सांप को सोच करके अजीब सी गिनगिनाहट होती है मन में ?

: सामने सांप देख कर भी ऐसा लगता है ?
: हां ! कभी कभी । लेकिन अगर सामने से सांप जा रहा हो तो मैं उसे अंत तक जाते हुए देख सकता हूँ उस समय ऐसा नही होता कि मैं कहीं भाग जाऊं।

:सांप की हाथ में लेने के बारे में कभी सोचा है ?
: हाँ ! लेकिन ऐसा सोचने भर से मन अजीब तरीके से गिनगिना उठता है ।
: अक्सर कैसा सांप दिखता है आपकी सोच में ?
: लंबा चौड़ा मोटे और बड़े फन वाला ।

: आपको क्या लगता है अगर हकीकत में आपके कमरे में सांप आ गया तो आपको किस तरीके से हानि पहुंचा सकता है ?
: मुझे लगता है मैं उसे देख बहुत ज्यादा घबरा जाऊंगा , शायद चिल्लाने भी लगूँ ...

: फिर ?
: मैं आगे सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि वह मुझे लपेट लेगा और कहीं बार काटेगा या ढंक मारेगा ।
लेकिन ये सब सोचते हुए मुझे इन सब की हकीकत पर शक भी होता है । मुझे ये लगता है कि सांप मुझे क्यों काटेगा वह मुझे क्यूं लपेटेगा, जब मैंने उसे कुछ हानि नही पहुचायी है तो ।

: मान लीजिये सांप ने लपेटा, काटा , ढंक भी मारे ...आपको क्या लगता है उसके बाद क्या होगा ?
: मैं बेहोश हो जाऊंगा या शायद मर जाऊं ।

: फिर ?
: इनके आगे सोचने से पहले मैं या तो कमरे की लाइट ऑन कर देता हूँ या आँखें खोल देता हूँ  या प्रयाश करता हूँ कमरे से बाहर चला जाऊं या लाइट ऑन करके ही सोऊं । लेकिन लाइट ऑन करके सोते वक्त भी हल्का हल्का ये डर दिमाग में बना रहता है ।

: अच्छा ! अगर उपरोक्त परिस्थितियों में कोई साथ हो तो। मतलब कमरे में या आस पास कोई हो तो ?
: कोई कमरे में हो तो सारा डर एक दम खत्म हो जाता है । कोई आस पास हो जिसकी आवाजें सुनाई दे रही हो या मुझे पता हो कि पास के कमरे में कोई है तब भी काफी हद तक डर खत्म हो जाता है ।

: अच्छा फिर भी दिन में अगर अकेले कमरे पर रहना पड़ा ,सोने की बार छोड़कर तो आपको कोई खास समस्या नही रहती क्यों ?
: हाँ मैं रह लेता हूँ । सोने के अलावा सारे काम अच्छे से कर लेता हूँ ।

: अच्छा अगर रात की बात करें तो आपको क्या लगता है कि रात में डर ज्यादा क्यों लगता है ?
: मुझे लगता है
1. रात में चारों तरफ अंधेरा होता है , अंधेरे से जुड़े डर के बारे में मैने पहले ही बताया हुआ है ।
2. रात में आस पास के लोगों की हलचलें बहुत कम हो जाती है । ये भी एक कारण है ।
3. रात में सब सुनसान सा लगता है ।

: अच्छा ! रात में छत से आसमान देखना कैसा लगता है ।
: अच्छा लगता है, सुकून भरा लगता है ।

: और डर ?
: अकेले रहूं तो लगता है ।

: बाथरूम में कभी डर लगा ?
: हाँ अगर हल्की रोशनी वाली लाइट लगी हो तो , नहाते वक्त लगा है कई बार ।

: कैसा डर लग नहाते वक्त ?
: ऐसा लगा जैसे अभी पानी में बिजली उतर आएगी और मुझे जकड़ लेगी ।

: ऐसे वक्त घबराहट होती है ?
: हाँ

: फिर क्या किया आपने ?
: पानी की टैप बंदकर करके आस पास के लोगों की आवाज़ें सुनने की कोशिश करता हूँ । आवाजें सुनकर मुझे लगता है ...नही नही सब ठीक है ।

: जब भी अलग अलग तरीकों से आपको डर लगता है और हल्की घबराहट होती है तो आप क्या करते हैं ?
: मैं आस पास के लोगों की आवाजें सुनने की कोशिश करता हूँ ...मैं खुद को ये समझाने की कोशिश करता हूँ कि आज तक कुछ अजीब नही हुआ तो आज भी नही होगा ..सब मेरा भ्रम बस है ।

: इन कोशिशों से कोई फर्क पड़ता है ?
: हाँ ! थोड़ा सहज हो जाता हूँ लेकिन पूरी तरह नही ।

: आप क्या चाहते है ?
: मैं बिल्कुल निडर बनना चाहता हूं जो रात या दिन अकेले घर में रह सके । अकेले पढ़ाई और अन्य क्रियाएं सहजता से कर सके । अकेले अंधेरे में भी सो सके । रात में भी कहीं जा सके । मैं बहादुर बनना चाहता हूं ।

~ दीपक

Tuesday, 3 April 2018

प्यार की बेजुबानी लड़ाई

Image Source : Internet

 आज शहर की आबोहवा में पढ़े लिखे न जाने कितनों की बहस में महिला सशक्तिकरण की गूंज उठ रही है । महिलाओं का छोटा समूह जिसने शिक्षा के बल पर अपने असल अस्तित्त्व को जाना और समझा वह आज एक अलग नजर से दुनिया को देख और समझ रही है । लेकिन वास्तविकता की थोड़ी और तह में जाय तो एक और तस्वीर भी दिखती है । आज की महिलाओं की लड़ाई सिर्फ पुरुष वर्ग के बराबर खड़े होने की ही नहीं है इनकी एक  लड़ाई  लंबे अरसे से उस सम्मान और प्यार के लिए भी है,जिसके लिए कभी कभी  उनके  अन्तः मन को सिसकना तक पड़ता है |  


 एक महिला जो इस पढ़े लिखे वर्ग से किसी वजह से पिछड़ी रह गयी वह भी एक अरसे से ऐसी लड़ाई में शामिल होना चाहती है। एक संयुक्त परिवार में इस वर्ग के ऊपर ढेरों  जिम्मेदारियां होती है, कुछ जिम्मेदारियां इसलिए भी बढ़ जाती हैं क्योंकि वो पढ़ी लिखी नहीं  है कुछ बातों पर तर्क नहीं दे सकती या उन्हें तर्क देने का अधिकार नही होता है  ।  इन सारी जिम्मेदारियों को ढोती वह जो चाहती हैं वह है  बस  प्यार और सम्मान | पर ज्यादातर जगहों पर इसके लिए भी उन्हें लड़ना पड़ता है । एक ऐसी लड़ाई जिसमें उन्हें न बोलने का अधिकार होता है ना अनशन करने का क्योंकि पुरुषत्व की दृढ़ता के आगे  उन्ही के वर्ग का एक हिस्सा भी  उनका दुश्मन बन बैठता है । वह उन्हें मर्यादाओं की कश्में देता है, उनके दबे रहने का अतीत याद दिलाता है।  अंततः इन्ही बेमतलब की मर्यादायों का भार उनकों और उनकी अंदरूनी आवाज को भी दबा देता और उनके लिए प्यार और सम्मान को भी सपना बना देता है जिसकी वो असल हकदार होती हैं।
~दीपक