हमें उस एक पल में जिंदगी की गंभीरता पर शक होने लगता है जब आस पास दिखने
वाला कोई चेहरा अचानक से गायब हो जाता है । दूर बहुत दूर । अगले ही पल
दुनिया के लिए, इसके स्वरूप के लिये हमारा नजरिया, हमारी सोच बिल्कुल अलग
हो जाती । दिल और दिमाग एक बच्चे की शक्ल में ढल जाता है । जो सोते हुए भी
आसपास अपनो का वजूद बनाये रखना चाहता है, माँ से चिपक के या पिता की उंगली
पकड़ के ही सही ।
यह बच्चे की शक्ल वाला दिलोदिमाग हमें और करीब ला देता और हम एक दूसरे के लिए ऐसे सहारे बन जाते है जो हमें हौसला देता है, ढांढस बधाता है हर दर्द को सहने और हर सच्चाई की कड़वाहट को स्वीकारने का ।
और कहीं धूमिल होती मानवता चटक हो जाती, गहरे आसमान जैसी ।
~दीपक
यह बच्चे की शक्ल वाला दिलोदिमाग हमें और करीब ला देता और हम एक दूसरे के लिए ऐसे सहारे बन जाते है जो हमें हौसला देता है, ढांढस बधाता है हर दर्द को सहने और हर सच्चाई की कड़वाहट को स्वीकारने का ।
और कहीं धूमिल होती मानवता चटक हो जाती, गहरे आसमान जैसी ।
~दीपक
No comments:
Post a Comment