वह पास होकर भी इतनी दूर
जैसे सितारों की दुनिया
वह पहचानी भी, अनजानी भी
जैसे ख्वाबों की दुनिया
उसकी ख़ामोशी में अपने कुछ निशां ढूंढते
कुछ अनसुलझी पहेलियों की छोर ढूंढते
अपने आप से फिर वही सवाल पूछा है
क्यूँ घटती नही कुछ दिलों की दूरियां
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बेबस मन को हर दफा कौन समझाए
कैसे बेचैनियों का दौर खो जाये
उसकी जिन्दगी में अपना वजूद ढूंढते
जमे अश्कों को ढरकाती हैं “करीबी दूरियां”
~दीपक
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