Monday, 30 January 2017

करीबी दूरियां



वह पास होकर भी इतनी दूर

जैसे सितारों की दुनिया

वह पहचानी भी, अनजानी भी

जैसे ख्वाबों की दुनिया



उसकी ख़ामोशी में अपने कुछ निशां ढूंढते

कुछ अनसुलझी पहेलियों की छोर ढूंढते

अपने आप से फिर वही सवाल पूछा है

क्यूँ घटती नही कुछ दिलों की दूरियां
Image Source : Web

बेबस मन को हर दफा कौन समझाए

कैसे बेचैनियों का दौर खो जाये

उसकी जिन्दगी में अपना वजूद ढूंढते

जमे अश्कों को ढरकाती हैं  “करीबी दूरियां”


~दीपक

Monday, 23 January 2017

What is permanent in life ??

Everything happens for a reason, people change so that you can learn to let them go . In reality every time its not easy to find a eraser so that you can redraw your surroundings .
many times it looks like very hard to suppress your urges , whom you are very used to. It's like your entire life revolved around that some peoples and it is not the same anymore. The only reason why it is so hard to forget is because we let go of people and not their memories, or the memories that we shared with them.
 Living in the past never helped anyone. Wasting time on people who are not a part of your life is not going to help you.Reliving shared memories never helped anyone. When you let go of someone, you got to let go of their memories.Learning to accept the fact that nothing is permanent neither relations , bonds, love, faith, nor even existence of humans.
But its true its impossible to forget the sensations in your nerves, in your heart, even in your mind who awesomely effected you beyond limits…..fully genuinely & honestly.
~Deepak K Tripathi

Sunday, 15 January 2017

“भाग्यशाली माँ है , या खुशनसीब हम ” ?



Image Source: Web
आज माँ की आवाज कुछ नए एहसासों से भरी हुई थी | माँ आज पूरे दिन व्रत रही है | मेरी अपने बच्चों की कुशलता के लिए | आज माँ की आवाज में मुझे ममत्व और अपनेपन के साथ संतोष और पूरेपन की झलक दिखी | ऐसा नहीं कि आज मै अपनी अटखेलियों से बाज आ गया और माँ से उसकी काल्पनिक बहू के बारे में बातें नहीं की पर आज बातों का सफ़र किसी और रास्ते मुड़ गया |
माँ ने कहा “बड़े इंतजार के बाद तुम मेरी दुनिया में आये हो बेटा ! मै बहुत भाग्यशाली हूँ”| मै बड़ी देर तक सोचता रहा ....कि “भाग्यशाली माँ है , या खुशनसीब हम ” ?
दोस्तों बचपन से सुनता आया हूँ “हमें भगवन ने बनाया है” | इस दुनिया ने अदृश्य भगवान और देवियों के लिए न जाने कितने व्रत और त्यौहार बनाये.. पर इस दृश्य भगवान और देवी के लिए कुछ नहीं ?
माँ –पापा को अपने किसी भी कार्य से कभी निराश मत करना दोस्तों ! हमारे द्वारा उन्हें दी गयी हँसी और खुशी ही सच्चे मायने में उनकी पूजा है |
  –दीपक

Thursday, 12 January 2017

खुद्दारी, अहम् और जिद की दीवार और पार तुम

ये खुद से लड़ने की शुरुआत हर रोज होती है जब तुम्हारी आवाज और हंसी इस जेहन में गूंजती है और चेहरा आस पास से होकर यूँ गुजरता है जैसे कोई पराया ख्वाब | मन को बांधना भी कितना कठिन है न , मन न जाने क्या खोजता है | उस पुराने वक्त में जाने से जी घबराता है और वर्तमान से मै भागता रहता हूँ | एक किसी पारदर्शी दीवार के उस पार खड़ा मै सब कुछ देखता हूँ, सुनता हूँ, ललचाता हूँ, दिल के उलाहने सुनता हूँ पर चाहकर भी उस पार नही जा पाता | कभी कभी मन करता है काश ये दीवार ईटों वाली होती, तो ये सब न दिखता नही;  पर एक रोज सपने में ईटों के दीवार के पार मेरी सासें फूलने लगी थी |



मुझे पता है ये दीवार मेरी खुद की बनायीं हुई है; खुद्दारी, अहम् और जिद के मसाले से पर तुमने भी तो इसे नजरंदाजी और रूखेपन के पानी से तरी कर दिन-ब-दिन और मजबूत किया है | मुझे अभी भी इंतजार है उस तूफ़ान, उस भूकंप, उस बारिश, उस सुनामी का जो इतना तेज होगा की इस दीवार को गिरा हमें फिर से करीब लायेगा | सच कहूँ तो मुझे डर लगता है दीवार की बढ़ती मजबूती देखकर | मुझमें आशा का एक छोटा सा दीपक भी अब जैसे आखिरी सासें ले रहा है |

~दीपक