Saturday, 5 November 2016

कोई कीमती चीज़ खो जाये न तो दिन में मत तलाशना रात में ढूँढना , मोमबत्ती की बुझी लौ के सहारे....




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कोई कह रह रहा था  “अच्छा ही है भाई ठंडी आ रही है” मैंने कुछ जवाब नही दिया बस कुछ याद करके थोडा सा मुस्कुरा भर दिया |
 इन ठंडी हवावों को दोस्त कहूँ या दुश्मन अक्सर फैसला नही ले पाता, ये जिस्म के हर जर्रे में ठिठुरन भर जाती है पर इनके साथ वक्त बिताना भी तो कितना अच्छा लगता है न !
वह अक्सर कहती जब कोई कीमती चीज़ खो जाये न तो दिन में मत तलाशना रात में ढूँढना , मोमबत्ती की बुझी लौ के सहारे | उसकी इस बात पर मै अक्सर हंस देता था क्योंकि मै निश्चिंत जो था अपने जिन्दगी की कीमती चीज़ को | हम घंटों बात करते थे इन टिमटिमाते तारों पर ये कुछ बोलते ही नही अब ; मै भला कब तक अकेले बोलूं | बीतती रातों  के साथ ये वापस खो जाते हैं कहीं | 
उसकी याद सर्दियों की हवा सी आती है और कुछ रोज में ही ऊपर से नीचे तक कपा जाती है | घड़ियाँ बीतते हुए ऐसी -ऐसी सिहरने उठती है जैसे गर्म हाथों को किसी ठंडी कलाई का स्पर्श हो गया हो | हर स्पर्श सुखद हो ये जरुरी नही पर संवेदनावों की हुक उठती जरुर है , हर उस कोमल स्पर्श के साथ प्यार और अपनेपन के साथ अंदर तक जगह बना ली हो |
~ दीपक

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