Sunday, 11 September 2016

अजनबी और अपने




उस अक्श को भुलाने की कोशिश मत करना
जो तुम्हे हौसला देता है
कुछ पल मुस्कुराने का
खुश रहने का
बेपरवाह होने का
जी भर के जीने का
बिछड़े खुद से मिलने का
आजाद होने का .........

उस अपने को अजनबी  न होने देना  
जो न होकर
भी पास रहता
याद बनकर
दिल के किसी कोने में
जो कभी साथ नही छोड़ता
धूप में परछाई की तरह
अंधियारें में उम्मीद की तरह
भरोसे की प्राचीर बनकर
डटा रहता है
आँधियों में 
तूफानों में
दुनियादारी की झंझावातों में
जो नही देखता तुममें
जाति को
धर्म को
रंग को
बस देखता है हर घड़ी
तुममें छिपे खुद को .....

~दीपक  

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