अपनेपन और परायेपन के बीच का फासला बड़ा लम्बा होता है | मै हर रोज
कोशिश करता हूँ उसे उतना पराया बनाने की जितनी वो मेरी अपनी थी , पर अकेलेपन की
तन्हाई में सारी कोशिशों पर पानी फिर जाता
है | नजदीक वो आती है या करीब मै जाता हूँ पता नही पर उसकी गैरमौजूदगी में भी उसे
उतना पास से महसूस करता हूँ मै |
हवाएं चलती है , चलकर रुक जाती है ; पर ये बहाव नही रुकता | हारकर
जिद्दी मन फिर से वजहें तलाशता है | ऐसी वो सारी वजहें जो मजबूर करती है इस लम्बे फासले को तय
करने की | वजह मेरा अहम् है या उसकी बेरुखी इस पर बहसे शुरू हो जाती है | तर्क –वितर्क
, सवाल –जवाब | मुकदमा चलता है , बस फैसले
नही आते | सच ही हैं बड़े से बड़े अभाव को
इंसान आसानी से सह लेता है पर किसी के “नेह-छोह” का अभाव अन्दर ही अंदर हौसलों की
दीवार को खोखला कर देता है |
~दीपक
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