Sunday, 4 September 2016

“नेह-छोह” का अभाव




अपनेपन और परायेपन के बीच का फासला बड़ा लम्बा होता है | मै हर रोज कोशिश करता हूँ उसे उतना पराया बनाने की जितनी वो मेरी अपनी थी , पर अकेलेपन की तन्हाई में सारी  कोशिशों पर पानी फिर जाता है | नजदीक वो आती है या करीब मै जाता हूँ पता नही पर उसकी गैरमौजूदगी में भी उसे उतना पास से महसूस करता हूँ मै |
हवाएं चलती है , चलकर रुक जाती है ; पर ये बहाव नही रुकता | हारकर जिद्दी मन फिर से वजहें तलाशता है | ऐसी वो सारी  वजहें जो मजबूर करती है इस लम्बे फासले को तय करने की | वजह मेरा अहम् है या उसकी बेरुखी इस पर बहसे शुरू हो जाती है | तर्क –वितर्क , सवाल –जवाब |  मुकदमा चलता है , बस फैसले नही आते | सच ही  हैं बड़े से बड़े अभाव को इंसान आसानी से सह लेता है पर किसी के “नेह-छोह” का अभाव अन्दर ही अंदर हौसलों की दीवार को खोखला कर देता  है |  
~दीपक

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