Monday, 25 August 2014

एक चोरी


कभी –कभी रात के अधूरे ख्वाब दिन में पूरे हो जाते हैं | आज उसे देखा तो ऐसा लगा जैसे बीती रात का ख्वाब हकीकत में आंखों के सामने उतर आया हो | एक पल को जी हुआ की देर तक उसके ताजगी से भरे चेहरे को निहारता रहूँ , उसकी आंखों में अपनी छवि को तलाशता रहूँ | चोरियाँ बहुत की थी बचपन से आज तक , जैसे कभी मिठाइयाँ चुराकर खाई तो बहन के गुल्लक से छुट्टे पैसे निकाले कभी किसी  के बगीचे से आम चुराकर खाए ऐसी ही न जाने कितनी | अनेको बार मै रंगे हाथों पकड़ा भी गया  |आज भी वही हुआ | पर आज की चोरी अजीब थी | मै अपने आस –पास से नज़रें चुराकर उसे देख ही लेता  | न जाने कितनी देर तक ये सिलसिला चलता रहा | पर मै ज्यादा देर तक कामयाब न रह सका | उसकी आंखों ने मेरी यह चोरी आख़िरकार पकड़ ही ली | पर आज पहली मै रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद भी बहुत खुश था मै ................
(.........लिखी जा रही कहानी “मेरी जिन्दगी-मेरा प्यार”  से)

  

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