मॉल में घण्टों इधर उधर घूमने, खाने पीने के बाद अब वापस लौटना था । शाम के साथ मौसम रुख़ बदल चुका था । हमने ऑटो लिया कि तभी जोरों की बारिश आ गयी । बारिश की नन्ही नन्ही ढेर सारी बूदें हवावों के सहारे हमें छू के गुजर रही थी।
उसने अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया । नोएडा की सकरी सड़को पर चलती गाड़ियों आस पास बैठे लोगों से बेखबर मैं हवा के हर ठंडे झोंके से उसे छिपा लेना चाहता था। वह किसी सोती बच्ची सी हवा के हर झोंके के साथ और सिमट सी जाती थी ।
हम कॉलेज पहुँच गए अब तक बारिश भी बिल्कुल हल्की हो चुकी थी । हमने जाने से अपने स्पेशल टपरी से चाय पीने की सोची । स्पेशल इसलिये क्योंकि उस टपरी से हमारी ढेर सारी यादें जुड़ी है, ऊँची ऊँची बिल्डिंग्स के नीचे एक कोने में बिहार के किसी गांव से आये एक भैया वहां चाय बनाते थे । वह जगह ऐसी थी कि शायद कोई चाय पीने के लिए किलोमीटर भर पैदल चलता और वहां जाता सो वह हम लोगों की सीक्रेट जगह बन गयी थी । चाय वाले भैया हमारे लिए स्पेशल चाय बनाते और हम इस बीच ढेर सारी बातें करते । आज हम चुप थे। बड़ी देर तक वह मेरे कंधे पर सर टिकाये बैठी रही । मैं कभी कभी उसके बालों में हाथ फेरता तो वह और सिमट जाती । ठंडी हवावों के हर झोंके साथ हम गुम होते जा रहे थे । हमनें चाय पी और एक दूसरे का हाथ थामे पैदल ही गर्ल्स हॉस्टल की तरफ चलने लगे । अचानक हम रुक गए, हमारे हाथों पकड़ कमजोर हो गयी, ऊँची ऊँची बिल्डिंग्स की ढेर सारे खिड़कियों से अनजान हम अब एक दूसरे की बाहों में थे । हम एक दूसरे को आज जी भर के गले लगाना चाहते थे । बारिश बन्द हो गयी थी लेकिन ठंडी हवा हमें बाँध रही,उस अनजाने से रिश्तें में जो एक दिन टूटने वाला था ।
(लिखी जा रही कहानी का कुछ अंश)
~दीपक