Wednesday, 24 July 2019

ठंडी हवावों का बंधन

जून के गर्मी भरे शुरुआती दिन थे। हम अब भी इंटर्नशिप की तलाश में intershala गाहें बेगाहें देखते रहते थे । आज सुबह सुबह एक कॉल आयी । हम दोनों को इंटर्नशीप के इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। दोपहर की गर्मी में वो होस्टल से मेरे फ्लैट के नीचे आ चुकी थी, आदतन आज भी थोड़ा देर हो गयी थी मुझसे। मैं आते ही तैयार था उसके गुस्से और प्यार वाली डांट के लिए, मुझे पता था अभी  मैं सब सही कर लूंगा । हुआ भी वैसे । हमने ऑटो लिया दिए गए पते को ढूढंने निकल गए । इंटरव्यू अच्छा हुआ और थोड़ी देर में हम फ्री हो गए । हमने GIP मॉल जाने का सोचा, जैसा कि हम स्टूडेंट लाइफ में अक्सर करते थे, मॉल में गर्मी से निजात मिल जाएगी और साथ में कुछ खाना पीना भी हो जाएगा क्योंकि अब तक भूख भी लगने लगी थी ।
मॉल में घण्टों इधर उधर घूमने, खाने पीने के बाद अब वापस लौटना था । शाम के साथ मौसम रुख़ बदल चुका था । हमने ऑटो लिया कि तभी जोरों की बारिश आ गयी । बारिश की नन्ही नन्ही ढेर सारी बूदें हवावों के सहारे हमें छू के गुजर रही थी।
उसने अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया । नोएडा की सकरी सड़को पर चलती गाड़ियों आस पास बैठे लोगों से बेखबर मैं हवा के हर ठंडे झोंके से उसे छिपा लेना चाहता था। वह किसी सोती बच्ची सी हवा के हर झोंके के साथ और सिमट सी जाती थी ।

हम कॉलेज पहुँच गए अब तक बारिश भी बिल्कुल हल्की हो चुकी थी । हमने जाने से अपने स्पेशल टपरी से चाय पीने की सोची । स्पेशल इसलिये क्योंकि उस टपरी से हमारी ढेर सारी यादें जुड़ी है, ऊँची ऊँची बिल्डिंग्स के नीचे एक कोने में बिहार के किसी गांव से आये एक भैया वहां चाय बनाते थे ।  वह जगह ऐसी थी कि शायद कोई चाय पीने के लिए किलोमीटर भर पैदल चलता और वहां जाता सो वह हम लोगों की सीक्रेट जगह बन गयी थी । चाय वाले भैया हमारे लिए स्पेशल चाय बनाते और हम इस बीच ढेर सारी बातें करते । आज हम चुप थे। बड़ी देर तक वह मेरे कंधे पर सर टिकाये बैठी रही । मैं कभी कभी उसके बालों में हाथ फेरता तो वह और सिमट जाती । ठंडी हवावों के हर झोंके साथ हम गुम होते जा रहे थे । हमनें चाय पी और एक दूसरे का हाथ थामे पैदल ही गर्ल्स हॉस्टल की तरफ चलने लगे । अचानक हम रुक गए,  हमारे हाथों पकड़ कमजोर हो गयी, ऊँची ऊँची बिल्डिंग्स की ढेर सारे खिड़कियों से अनजान हम अब एक दूसरे की बाहों में थे । हम एक दूसरे को आज जी भर के गले लगाना चाहते थे । बारिश बन्द हो गयी थी लेकिन ठंडी हवा हमें बाँध रही,उस अनजाने से रिश्तें में जो एक दिन टूटने वाला था ।
(लिखी जा रही  कहानी का कुछ अंश)
~दीपक

Wednesday, 10 July 2019

बचपन, गाँव और बारिश..

अतीत और खास कर बचपन से जुड़ी बातें जब जेहन में आती है तो एक अजीब सी मुस्कराहट होठों पर छोड़ जाती है । आज जब शहर में बारिश को तरसता हूँ या बारिश को सीसे के उस पार से देखता हूँ तो मुझे वो बचपन और गाँव वाली बारिश याद आती है ।
बारिश के दिन की सबसे अच्छी बात ये होती थी उस दिन हम नेशनल हॉलिडे डिक्लेरेयर कर देते थे मतलब कि उस दिन बिना किसी और बहाने के दिन भर बिना अम्मा पापा के स्कूल न जाने के लिये डांट के, पूरा दिन मौज किया जा सकता था।
कभी कभी बारिश इतनी तेज होती कि घर से बाहर नहीं निकल सकते ऐसे में पूरा परिवार साथ बैठता । कभी कभी पड़ोस से कोई आ जाता और बातचीत की महफ़िल जम जाती । ऐसे में अक्सर पापा पकौड़ियों की फरमाइश करते और हम अंदर ही अंदर खुश हो जाते। अब पापा घर रहते तो सुरक्षात्मक कारणों से दिखाने के लिए ही सही पर किताबें कापियाँ भी खुली रखी जाती थी लेकिन बड़ी दीदी जब तक पकौड़ियाँ बना नही लेती हम एक दो चक्कर किचेन के लगा आते थे ।
घर पर बनी गरमा गरम पकौड़ियाँ साथ में चाय और  बाहर झमाझम बारिश, आज सब धुंधला ही सही, याद आता है तो मन उसी में खो सा जाता है ।


मझली दीदी हमें कागजों वाली नावँ बनाना सिखाती और  जैसे ही बारिश थमती हम अपनी अपनी नावँ लिए पास के तालाब पहुँच जाते । हम इस उम्मीद में नावँ तालाब में छोड़ते कि यह तैरते तैरते उस पार पहुँच जायेगी । अक्सर इस बात पर शर्त भी लगती । कभी कभी एक्सपेरिमेंट के तौर पर नावँ पर चीटें भी बैठाये जाते, ऐसा मानना था कि ये नावँ ढूबने नहीं देंगे और हम शर्त जीत जायेंगे । लेकिन वे तेज पानी के बहाव को नही सह पाती और शायद ही कोई नावँ उस पर तक पहुँच पाती ।
बारिश के साथ तालाब किनारे नए नए निकल आये पीले पीले मेढ़क भी बड़े कौतूहल के विषय होते, हम पापा के बताए इस बात पर कम भरोशा कर पाते थे कि कुछ दिनों पहले की चिलचिलाती धूप में ये जमीन के अंदर छिपे थे सो अक्सर इसको लेकर हम अपने अपने काल्पनिक ज्ञान साझा करते ।
गाँव में बारिश के दिन आसान नहीं होते थे, आसपास पानी भर जाना, जलावन की लकड़ियों की किल्लत, जानवरों के चारे और रहने की दिक्कतें सो अलग लेकिन हम बच्चें थे और अम्मा पापा सारी दिक्कतें अपने ऊपर समेत लेते थे ।

Monday, 1 July 2019

अधूरापन

उसके जाने के बाद से मेरे जीवन में एक अजीब सा अधूरापन घर कर गया है । मैं अक्सर तरकीबें सोचता हूँ  और अलग अलग तरीकों से उस अधूरेपन, उस खाली कोने को भरने की कोशिश करता हूँ पर जब अपनेआप में वापस लौटता हूँ तो वह कोना जस का तस बना मिलता है खाली, एक अजीब सी खामोशी ओढ़े । हमारी जिंदगियों में कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है जिसकी वजहें हमें लाख सोचने के बाद भी समझ नहीं आती । कभी कभी लगता हैं कि सड़क सपाट हो तो चलने में बोरियत हो जाएगी कुछ बाधाएं जरूरी है रफ्तार की तारतम्यता और अन्तःकरण की चेतना के लिए फिर लगता है कि क्या ये बाधाएं इतनी गहरी होनी चाहिए कि इनसे उबरना मुश्किल हो जाय?
बहुत सोचने पर लगता है हर बाधा अपनेआप में कुछ सीखे लिए होती है और शायद इनकी गहराई भी उन्ही के अनुपात कम या ज्यादा होती जाती है ।
पता है तुम्हारे जाने के बाद से दुनिया के लिए मेरा नजरिया बदल गया है । अब किसी पर भरोसा बढ़ने लगे तो एक अजीब सा डर आने लगता है मेरे अंदर । अब उजाले का लबादा ओढ़े दुनिया का ढेर सारा अंधकार मुझे दिन में भी दिखाई दे जाता है । अब किसी के चेहरे की मासूमियत मेरे दिल में पिघलने भर का आघात नहीं कर पाती । कभी कभी मुझे लगता है अब मेरा बच्चों वाला दिल; चालाक और समझदार दिमाग की बातें सुनने लगा है ...
(लिखी जा रही कहानी "मेरी ज़िन्दगी मेरा प्यार" का कुछ अंश)
~दीपक