Monday, 28 November 2016

सफ़र में चलते रहना....

DEEPAK'S PHOTOGRAPHY


सफ़र में चलते रहना जैसे खुद में खोने सा लगता है । कहीं धूप , कहीं घनी छाव , कहीं कुछ अपना , कहीँ कुछ नया सब हमको छूकर निकलते जाते है । मंजिल एक बहाना होती है और उसकी डोर थामें हम चलते जाते है ।
एक छोटा सा, सुनसान स्टेशन यूँ फर्राटे से गुजरता है तो उसकी गूँज जैसे संदेशा देती है कि हाँ हम बढ़ रहें हैं और हम अगले के इंतजार में जुट जाते हैं । कहते हैं कि कुछ साथी मिल जाएं तो लंबे सफर भी आसान हो जाते हैं, पर ये भी सच है कि खुद के अलावा कोई और मूर्त साथी नही जो हर सफ़र में आपका साथ दे सके । एक तरीका और है क्यूँ न हर सफ़र पर नए दोस्त बना लिए जाएँ ।
बस सतर्कता के साथ थोड़ा विस्वास , ख़ामोशी को तोड़ने की पहल और स्वार्थ से परे थोड़ा अपनापन ही तो चाहिए होता है........... क्यूँ….??
~दीपक

Saturday, 5 November 2016

कोई कीमती चीज़ खो जाये न तो दिन में मत तलाशना रात में ढूँढना , मोमबत्ती की बुझी लौ के सहारे....




Image Source : web
कोई कह रह रहा था  “अच्छा ही है भाई ठंडी आ रही है” मैंने कुछ जवाब नही दिया बस कुछ याद करके थोडा सा मुस्कुरा भर दिया |
 इन ठंडी हवावों को दोस्त कहूँ या दुश्मन अक्सर फैसला नही ले पाता, ये जिस्म के हर जर्रे में ठिठुरन भर जाती है पर इनके साथ वक्त बिताना भी तो कितना अच्छा लगता है न !
वह अक्सर कहती जब कोई कीमती चीज़ खो जाये न तो दिन में मत तलाशना रात में ढूँढना , मोमबत्ती की बुझी लौ के सहारे | उसकी इस बात पर मै अक्सर हंस देता था क्योंकि मै निश्चिंत जो था अपने जिन्दगी की कीमती चीज़ को | हम घंटों बात करते थे इन टिमटिमाते तारों पर ये कुछ बोलते ही नही अब ; मै भला कब तक अकेले बोलूं | बीतती रातों  के साथ ये वापस खो जाते हैं कहीं | 
उसकी याद सर्दियों की हवा सी आती है और कुछ रोज में ही ऊपर से नीचे तक कपा जाती है | घड़ियाँ बीतते हुए ऐसी -ऐसी सिहरने उठती है जैसे गर्म हाथों को किसी ठंडी कलाई का स्पर्श हो गया हो | हर स्पर्श सुखद हो ये जरुरी नही पर संवेदनावों की हुक उठती जरुर है , हर उस कोमल स्पर्श के साथ प्यार और अपनेपन के साथ अंदर तक जगह बना ली हो |
~ दीपक