मलाई वाली बर्फ.......
आ गए भैया गर्मी के दिन आ
गए .......
अब लू भरी गर्म हवायें
चलेंगी , अब बर्फ वाला गाँव में बर्फ बेचने आएगा , शहरी दोस्त मुझे माफ़ करें बचपन
में हम जैसे गाँव के बच्चों के लिए
आइसक्रीम नहीं बल्कि बर्फ होती थी
रोमांचकारी चीज जो हर रोज अपनी मर्जी के मुताबिक नहीं बल्कि कभी –कभी
खुशकिस्मती से ही मिलती थी |
50पैसे वाली लाल , 1रु वाली
सफ़ेद गरी वाली और 2रु की आती थी मलाई वाली | दोपहर के सन्नाटे में जब घर के
ज्यादातर बड़े कहीं पेड़ की छाँव में या कहीं घास –फूस की झोपड़ के नीचे आराम फरमा
रहे होते , मम्मी लोग अपने रसोंइ के काम से मुक्त होकर कुछ और कर रही होती और
हमारी टोली लूडो या वजीर –बादशाह-सिपाही-चोर में व्यस्त होती थी उसी समय अचानक से
बर्फ वाले के भोपू की हल्की-हल्की आवाजें सुनाई देती तो पूरी टोली के कान खड़े हो
जाते | ऐसे वक्त में खेल थोड़ी देर के लिए थम जाता| हर कोई अपने –अपने घर की तरफ
भागता | कोई गुल्लकें टटोलता , कोई दादा ,दादी , मम्मी ,पापा , दीदी , भैया से गुजारिश में जुट जाता | बूढ़े बड़े दादा जी तो
कभी –कभी बर्फ वाले को गरिया (गाली) भी देते थे क्योंकि उसकी वजह से उनके नींद में
विघ्न पड़ता था |
पापा सो रहे होते तो जगाने
की हिम्मत न होती क्या पता कहीं डांट न पड़ जाये | मुझे याद है जब मै जिद किया करता था हर बार मलाई वाली यानि 2 रु वाली बर्फ खाने की
| इस मामले में मै तेज था , हर बार मम्मी या दीदी को इमोशनली ब्लैकमेल करता और
फाइनली दीदी मुझे 2 रु वाली दिला देती , खुद चाहे 50 पैसे वाली ही क्यूँ न खानी
पड़े |मै इकलौता छोटा भाई जो ठहरा | कभी –कभी पैसे न होने पर अनाज के बदले भी बर्फ
मिल जाती थी |
कई दफा ऐसा भी होता कि चिल्लर की जुगत भिड़ाते-भिड़ाते
बर्फ वाला जा चुका होता ; ऐसा वक्त बहुत ही दर्द भरा होता , कुदरत की इस विपदा के
शिकार टोली के कई सदस्य तो रोने भी लगते | ऐसा लगता जैसे बहुत तैयारी के बावजूद
एग्जाम का कोई पेपर देरी की वजह से छूट गया हो | फ़िलहाल थोड़ी डांट-डपट के बाद टोली
वापस उसी लूडो और वजीर –बादशाह में व्यस्त और मस्त हो जाती |
बड़ा हुआ , बड़े शहर में पढ़ने
आ गया ; दीदी भी अपने घर चली गयी ; अब यहाँ बड़े शहर में बर्फ नहीं आइसक्रीम मिलती है या यूँ कहे की हम
उसे सिर्फ इसी नाम से जानते हैं , जो 1 रु , 2 रु वाली नामों से नहीं बल्कि न जाने
कितने अंग्रेजी वाले नामों से जानी जाती हैं |
आज इंजीनियरिंग कॉलेज के
कैफ़े की सीढियों पर जब अपनी नयी मण्डली के साथ चोकोबार की मस्ती चल रही होती हैं
तो कभी कभी बीते वक्त की वह बर्फ भी याद आ ही जाती है १रु वाली , २रु वाली और मलाई
वाली .....................
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दीपक त्रिपाठी
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