हम उम्र के जिस पड़ाव पर थे वहां रिश्तों की परिधियाँ कभी कभी नासमझी की शिकार हो जाती है । एक रोज ऐसा ही कुछ हुआ जिसने हमेशा हमेशा के लिए हमारे बीच ऐसे कांटें बिखेर दिए जिसने जब भी मौका मिला हमें दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । गलतफहमी की एक ऐसी दीवार जिसने उसकी नजरों में मुझे एक अपराधी बना दिया । मैंने उस गलतफहमी को दूर करने की को कोशिशें की लेकिन वह मेरे अपराध स्वीकारोक्ति के लिए अड़ी रही । वह औरों से थोड़ी अलग है । अपार प्रेम और थोड़ा नटखटपन, ढेर सारी जिद और उतना ही स्नेह । बाहर से सख्त दिखने वाली अंदर से उतनी ही कोमल। वह हममें इसलिए भी अलग थी क्योंकि उसका नजरिया हमसे अलग था वह दुनिया की शर्तों से परे ज़िन्दगी को अपनी समझ की कसौटी पर जीती थी । जो उसे गलत लगता उसके लिए पत्थर सी सख्त बन जाती जो सही लगता उस पर अपना स्नेह न्यौछावर करने को तत्पर रहती । शायद यही वजह थी कि मेरे स्पष्टीकरण को झूठ समझ वह मुझे कभी माफ नहीं कर पाई ।
मुझे उसकी बड़ी याद आती है कभी उसके जैसे किसी फ़िल्म के किसी पात्र को देख, कभी उसके साथ घूमें कुछ रास्तों को देख, कभी साथ गुनगुनाते किसी शाम को महसूस कर तो कभी उसकी बेबाकी को याद कर...