Friday, 21 July 2017

भ्रम की गतियाँ..

सोचो अगर एक दिन के लिए हम सारी घड़ियों को बंद कर दें । डिजिटल एनालॉग सब । क्या उस एक दिन सब ठप हो जाएगा ? हम रात को सोयेंगे और सुबह जागेंगे नही । अखबार वाला सुबह अखबार नही देने नही आएगा । दूध वाला गेट पर आवाज नही लगाएगा। किसान खेत में काम को नही जाएगा मजदूर रोजी रोटी के इंतजाम में नही निकलेगा । नौकरी वाले लोग काम पर नही जाएंगे।
आप तुरंत जवाब दो या थोड़ा देर सोचकर मुझे पता है; आपका जवाब । आप कहेंगे ऐसा कुछ नही होने वाला ।
उदाहरण के तौर बोलेंगे पहले जब घड़ियां नही थी तब भी तो सब कुछ होता था उस एक दिन भी वैसे ही होगा ।
मुझे लगता है यह प्रकृति ही है या घूमती धरती की गति जो किसी न किसी तरह हमें अपनी गति से जोड़ कर रखती है और उस गति के सहारे हम चलते रहते हैं । सेकंड , मिनट , घण्टे, दिन , महीने और साल बीतते रहते हैं ।
कभी हम दौड़ते हैं तो हमें लगता है वक्त के हिसाब से हमारी रफ्तार तेज हो गयी और कभी चलते चलते हम रुक जातेहैं तो लगत है वक्त के हिसाब से हमारे गति शून्य हो गयी लेकिन सही मायनों में क्या सच में हम रुकते हैं ...वक्त अपने हिसाब से हमें बाधे चलता रहता है और हम भ्रम में अपनी गतियाँ निर्धारित करते हैं ।
~दीपक

कश्मकश ...

कश्मकश (Confusion) ज़िन्दगी का एक हिस्सा है; ऐसे ही जैसे चलना ।
हर सुबह उठने के बाद अगर आप चलना चाहते हैं तो कहीं न कहीं इनसे मुलाकात पक्की है । कश्मकश मोड़ जैसे होते हैं, जहां आपको फैसले लेने पड़ते है। हर ऐसे मोड़ पर आपको चुनना पड़ता है; कभी दो में एक तो कई बार कइयों में से एक । अपने चुनाव के ऊपर अगर आप पूरी तरह आश्वस्त है तो चलते रहना थोड़ा आसान हो जाता है लेकिन हर बार आप पूरी तरह अपने फैसले से आश्वस्त हो ये भी जरूरी नही है ।
अब दिक्कत ये है कि हम हर मोड़ पर ज्यादा वक्त जाया नही कर सकते ; आश्वस्त भी नहीं हैं और चलते भी रहना है । तो क्यों न ऐसे वक्त में मंजिल को याद करें ..मोड़
खुद -ब-खुद रास्ता सुझाएगा ..
~दीपक