Saturday, 13 May 2017

आखिरी सासें

आज मेरे गमले के गुलाब ने आखिरी सासें ली । मुझे समझ नही आ रहा उसकी मुक्ति की खुशी मनाऊं या उसके साथ छोड़कर जाने का गम । गम में डूबकर जीना आसान होता है शायद । मुझे अच्छा लगा रहा है ..अंतिम वक्त में मैं उसके साथ नही था । मुझे उसकी खुशबू बहुत पसंद थी । मुझे उसे पानी देना अब अच्छा लगता वह सूख गया है अब । मुझे उसकी सिधाई पे दया आती ...कभी कभी मैं जोर जोर से हँसने लगता हूँ । अब मैं उसे याद नही करता , और अब वो मुझे पसंद नहीं करती ...ऐसा हम दोनो कई दिनों से एक दूसरे के लिए सोचने लगे थे ।
वो गुलाब को पानी देने आती थी । फिर एक दिन उसने आना बंद कर दिया ।
और फिर कबूतरों का आना भी बंद हो गया वही कबूतरों की जोड़ी जो मेरी खिड़की के उस पार बैठकर कहानियां सुनती थी ; इस शर्त पर की मैं दरवाजा न खोलूं ।
वो मेरी कहानी सुनने आते थे यह शायद मेरा भ्रम था कि है । ....अच्छा ...अच्छा अब समझ आया गुलाब ने इनसे दोस्ती कर ली थी ...चलो अच्छा ही हुआ सूख गया ....ओह ...रुको जरा ....आता हूँ...पानी डालने का वक्त हो रहा है ।
~दीपक

No comments:

Post a Comment