Monday, 14 March 2022

हकीकत होते सपनें.....

उसकी छोटी छोटी शरारतों पर मै अक्सर चिढ़ती हूँ, गुस्सा करती हूं और कभी कभी झूठी ही सही रूठ कर दूर बैठ जाती हूँ। विशेषकर तब और जब वह मुझे अपनी पुरानी या वर्तमान महिला मित्रों की कहानियाँ सुनाता है । मुझे पता है इनमें से ज्यादातर कहानियां काल्पनिक और मुझे चिढ़ाने के उद्देश्यों से होती है फिर भी मैं उस समय अपने आपको समझा नहीं पाती । मैं चाहती हूँ कि मेरा-उसका; हमारा समय कोई और न बाँट पाए । सच कहूं तो उससे इस तरह रूठने में भी कभी कभी मुझे बड़ा मजा आता है । उसका मनाना फिर छोटे छोटे तोहफे लाना और कभी कभी माथे पर अपने होंठ रख देना; मुझे अंदर ही अंदर रोमांचित कर देता है । 
पता है पिछली बारिश एक रोज टहलते हुए हम दूर निकल गए । छाता एक ही था, वैसे हमारी ज्यादातर चीजें अब दो से एक हो गयी चुकी हैं, चाहे वह खाने की प्लेट हो, जूस पीने की स्ट्रॉ हो या ओढ़ने वाला कम्बल । उस रोज भी जब उसकी अठखेलियों से रुख कर मैं दूर बैठ गयी तो उसने चुपचाप छाता मेरी ओर कर दिया । देखो ! कितना चालाक है ...पता है कि इस तरह मैं भीगने तो दूंगी नहीं । तो ऐसे हैं जनाब । मुझे हर बार खींच लाते हैं ...अपने और करीब ।
ऐसी ही नटखट सी है हमारी कहानी ...चलती जा रही मील दर मील ...और हम जीते जा रहे ...हकीकत होते सपनों को ।

~दीपक