Sunday, 2 August 2020

जवानी से बचपन का सफर...


शहर से गाँव जाना मेरे लिए जवानी से बचपन का सफर तय करने जैसा होता है ।
बचपन जिंदगी का वह हिस्सा जहाँ हुड़दंगई और बेफिक्री के साथ साथ हमारे खुद के कई मासूम सवाल होते हैं । कुछ के जवाब अपने मम्मा पापा दादी नानी और साथ के दोस्तों से जान पाते हैं और कुछ अन्तचित्त में कहीं दबे रह जाते हैं ।
ऐसे ही कुछ ख्वाहिशें भी होती हैं जो कहीं सिनेमा देखकर या कहानिया पढ़कर अलग अलग आकार लेकर पलती बढ़ती है ।
मुझे याद है मेरा बड़ा मन होता काश मेरे गाँव में भी एक नदी और एक छोटा सा रेलवे स्टेशन होता । अब ये बात सोचता हूँ तो बड़ी हंसी आती है । उस गुल्ली डंडे के ज़माने में नदी और रैलवेस्टेशन से क्या मतलब ।
पर बचपन तो बचपन होता है ; आजाद , बेफिक्र , नटखट , चंचल और मासूम ...
~दीपक