माँ की गोद से
उतरा तो परिवार का साथ मिला। जहाँ घर की
चहारदीवारी मेँ एक दुनिया बसती थी, मेरे अपनो की। जहाँ तोतली आवाज मे मैने बोलना सीखा, गिरते, लड़खड़ाते अपने
नन्हे पैरो पर खुद को सम्भालना सीखा ।
मेरे बचपन से जवानी तक साथ देते मेरे हमसफर साथियो की दुनिया।
जिनके साथ मैने कभी गुल्ली डण्डे कभी आँख-मिचौली कभी चोर-पुलिस के खेल खेले ।
जिनके साथ कागज की नाँव पर बैठ समन्दर पार करने के सपने देखे।
जिनके साथ हँसता-खेलता मेरा बचपन बीता।
थोड़े बड़े हुए तो इन्ही के साथ लकड़ी की स्लेट और स्याही थामे अपने विद्यालय की डगर पहचाना।
अब मै एक नयी जगह था जहाँ मै मेरी स्लेट पर उकेर कर बनाये गये अनजान शब्दोँ के साथ मै कई अनजान चेहरो से भी मिला । जो आज मेरे अपने बन चुके शब्दो की भाँति मेरे जाने पहचाने मेरे अपने बन गये है।
घर पर मेरे अपने थे जिनसे मेरा खून का रिश्ता था जिन रिश्तो के कई नाम भी थे और बाहर मेरे दोस्तोँ का साथ । इन सबसे मेरा खून का रिश्ता नही था और न ही इनसे रिश्ते का अलग-अलग नाम ही था पर इनसे मेरा लगाव ,मेरा अपनापन मेरे खून के रिश्तो से कम न था।
आज भी बिना इनके मेरी महफिले, मेरी खुशियाँ मेरी हँसी अधूरी होती है। कभी हम एक -दूसरे पर हँसते है , एक दूसरे को चिढ़ाते है पर कुछ भी हो हम एक दूसरे की आँखोँ मे आसूँ नहीँ देख सकते है।
हम एक दूसरे से नाराज भी होते है पर हमारा दिल ज्यादा दिनोँ तक दूरी बर्दाश्त नहीँ कर पाता और फिर हम बीती कड़वी बातोँ को भूल एक हो जाते है। खुशियो के पल हम साथ मिल कर बिताते है और जो दुख की घड़ी किसी एक पर भी आती है तो हम सबके कन्धे सहारे के लिए तैयार मिलते है।
दोस्त बहुत ही अनमोल होते है। आज के समय मे कई लोग एक दूसरे को दोस्त तो कहते है मगर समय आने पर दोस्ती के पवित्र रिश्ते की धज्जियाँ उड़ाने से नहीँ चूकते।
मै जब भी अकेला होता हूँ मुझे अपने दोस्तो का महत्व बखूबी समझ आ जाता है।
मैने उनसे बहुत कुछ सीखा है इस बात की हकीकत मै स्वीकार करता हूँ।
मुझे अपने दोस्तो पर गर्व है। मै अपने सभी दोस्तो को तहे दिल से शुकरिया अदा करता हूँ उनके अतुल्य प्यार , साथ और सम्मान के लिए।
>दीपक त्रिपाठी
एक पँछी जिसने हाल
ही मेँ उड़ना सीखा है और अपने नये उत्साह और उमंग के बूते ऊँचे आसमाँ मे उड़ने के सपने बुनता है उसी भाँति मै भी अपने पैरो पर चलते एक नये दुनिया मेँ
निकल पड़ा- मेरे दोस्तो की दुनिया।
मेरे बचपन से जवानी तक साथ देते मेरे हमसफर साथियो की दुनिया।
जिनके साथ मैने कभी गुल्ली डण्डे कभी आँख-मिचौली कभी चोर-पुलिस के खेल खेले ।
जिनके साथ कागज की नाँव पर बैठ समन्दर पार करने के सपने देखे।
जिनके साथ हँसता-खेलता मेरा बचपन बीता।
थोड़े बड़े हुए तो इन्ही के साथ लकड़ी की स्लेट और स्याही थामे अपने विद्यालय की डगर पहचाना।
अब मै एक नयी जगह था जहाँ मै मेरी स्लेट पर उकेर कर बनाये गये अनजान शब्दोँ के साथ मै कई अनजान चेहरो से भी मिला । जो आज मेरे अपने बन चुके शब्दो की भाँति मेरे जाने पहचाने मेरे अपने बन गये है।
घर पर मेरे अपने थे जिनसे मेरा खून का रिश्ता था जिन रिश्तो के कई नाम भी थे और बाहर मेरे दोस्तोँ का साथ । इन सबसे मेरा खून का रिश्ता नही था और न ही इनसे रिश्ते का अलग-अलग नाम ही था पर इनसे मेरा लगाव ,मेरा अपनापन मेरे खून के रिश्तो से कम न था।
आज भी बिना इनके मेरी महफिले, मेरी खुशियाँ मेरी हँसी अधूरी होती है। कभी हम एक -दूसरे पर हँसते है , एक दूसरे को चिढ़ाते है पर कुछ भी हो हम एक दूसरे की आँखोँ मे आसूँ नहीँ देख सकते है।
हम एक दूसरे से नाराज भी होते है पर हमारा दिल ज्यादा दिनोँ तक दूरी बर्दाश्त नहीँ कर पाता और फिर हम बीती कड़वी बातोँ को भूल एक हो जाते है। खुशियो के पल हम साथ मिल कर बिताते है और जो दुख की घड़ी किसी एक पर भी आती है तो हम सबके कन्धे सहारे के लिए तैयार मिलते है।
दोस्त बहुत ही अनमोल होते है। आज के समय मे कई लोग एक दूसरे को दोस्त तो कहते है मगर समय आने पर दोस्ती के पवित्र रिश्ते की धज्जियाँ उड़ाने से नहीँ चूकते।
मै जब भी अकेला होता हूँ मुझे अपने दोस्तो का महत्व बखूबी समझ आ जाता है।
मैने उनसे बहुत कुछ सीखा है इस बात की हकीकत मै स्वीकार करता हूँ।
मुझे अपने दोस्तो पर गर्व है। मै अपने सभी दोस्तो को तहे दिल से शुकरिया अदा करता हूँ उनके अतुल्य प्यार , साथ और सम्मान के लिए।
>दीपक त्रिपाठी