Tuesday, 20 June 2017

बिखरा सुकून

कभी कभी बिन मतलब का एक टीस जेहन में घर बना लेता है । न जाने कहाँ से आया, न जाने किस जरिये से ।
मुझे बड़ा इंतजार था बारिश का , बारिश आएगी तो अपने साथ सुकून लाएगी ।
बारिश आयी , ठंडी हवाएं भी आई , तालाब से मेढक की आवाजें भी सुनाई देने लगी पर सुकून नहीं आया ।
कभी कभी ज्यादा इत्मीनान भी अजीब माहौल पैदा कर देता है । उलझन हो तो नींद नही आती पर इत्मीनान भी एक हद से ज्यादा हो तो नींद गायब हो जाती है ।
सुबह उठकर देखा तो हर तरफ पानी ही पानी बिखरा था । हाँ रात में तेज बारिश हुई होगी । मैने इस सोच पर इतना ध्यान नही दिया । मैं कहीं और खो गया । बारिश का पानी तालाब में बिखरा बिखरा सा लग रहा था । एक पल को बड़ी जोर का झटका सा लगा जैसे मैंने कुछ खो दिया हो । मैं पछताने की वजहें ढूंढने लगा । मैं तेज बारिश को देख कर खुश होना चाहता था ....बहुत खुश....। पर अभी मैं उन सारी वजहों से रूबरू होना चाहता था । हाँ हाँ याद आया बीती रात मैं थोड़ा जल्दी सो गया था । सुना है सोने से तो सुकून मिलता है । पर मेरे हिस्से का सुकून .....क्यूँ मेरे हिस्से का का सुकून अभी भी मुझे बिखरा बिखरा सा लग रहा था। क्यूँ ?
~दीपक